Font by Mehr Nastaliq Web

समय

samay

मलय

अन्य

अन्य

मलय

समय

मलय

समय,

जो सभी के आकार में होकर ही

अपने आकार का होता है

जो दीवारों को जोड़कर भी

शेष कभी नहीं छोड़ता—

उतरता है आस-पास

और गरम लू की सीटियों से

मुझे चीरता हुआ निकल जाता है

निकलता कहीं नहीं होता

और होना—

यहाँ से वहाँ तक

आँखों—

हज़ारों-करोड़ों आँखों

को छीलता हुआ

आगे बढ़ता है

मेरी सामर्थ्य!

बीज उठते पौधों में

साँस लेती है

और आँखों में—

कहीं से उठे हुए

आकाश से गिरते शब्दों में

समय को देखती है गुज़रते हुए

देखना कोई फल की तरह

टूटता नहीं—अलग नहीं होता

इतिहास हवा में—

झीने वस्त्र की तरह काँपता है

और—

रहकर भी, रहता नहीं

फहरकर भी, बचता नहीं—

बढ़ने से

कोई कौन जाने!

पानी की बेचैन दूरी

और पत्थर की गहराई के कष्ट को

और मरने की तरह

ज़िंदगी में पड़े रहने के वश को

ज्यों—

थूँथन के बल पर चलना

और पंजों और पैरों के बल पर

सपाट हो जाना

ख़ुद अपने ही हाथों के आस-पास हो जाना

और अपनी ही पकड़ में जाने के लिए

झटक कर बिखर जाना

यह कैसा हो गया हूँ मैं

कि समय की पहचान में

अपनी ख़ुद की बेपहचान से

घिर गया हूँ ?

या आग की लकीर की तरह

जलते जाने का वक़्त हो गया हूँ

स्रोत :
  • रचनाकार : मलय
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

संबंधित विषय

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY