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समय-कथा

samay-katha

राजेंद्र कैड़ा

अन्य

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और अधिकराजेंद्र कैड़ा

    बदलता है समय

    पर ऐसे नहीं कि एकदम सब कुछ बदल जाए

    और सब कुछ हो जाए ठीक

    ऐसा नहीं होता

    कि एकाएक शहर के सारे कौए हो जाएँ सफ़ेद

    या पंख लगे हाथी चुगें आपकी छत पर चावल

    समय बदलता है उतना ही धीरे

    जितना कि 'क' के बाद 'ख' लिखती है धीमे-से

    कोई बुढ़िया

    और तब बदल जाता है इतिहास

    जब कोई कह दे तुलसी के साथ मीर और ग़ालिब भी

    बदलता तो तब भी है बहुत कुछ

    जब भूलकर सब कुछ एक लड़की

    ठीक अपने साथी की तरह

    मारती है पहला कश

    और बाहर फेंकते हुए धुआँ

    मुस्काती है धीमे-से

    धीमे से बदल जाते हैं सपने

    रंग तक बदल जाता है पानी का

    सपने लगने लगते हैं थोड़े और पराए

    और खारा पानी हो जाता है थोड़ा और खारा

    फेफड़ों और हवा के बीच अक्सर बदल जाता है संवाद

    हालाँकि यह बदलाव उतना ही धीमे होता है

    जितना धीमे और चुपचाप बदलता है बालों का रंग

    कोई पढ़ नहीं पाता इसे

    लेकिन यह भी एक बदलाव है

    जब रात की एकांत ख़ुमारी में

    या छुपकर घर के किसी कोने में एक शैतान लड़की

    करती है एक शरारत भरा एसएमएस

    अपने युवा प्रेमी को

    तब भी बदलता है बहुत कुछ

    स्रोत :
    • रचनाकार : राजेंद्र कैड़ा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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