एक
क्या कोई सुन रहा
जो कहता है
समय बीतता
किसको सुध है
ध्यान किसे
आगत की सब
सोच रहे
जो है वह
सब छुट रहा
धन जाता यह
किसे दीखता
दो
इस क्षण में से जो
घटना है
और कहीं
जुड़ जाता
और कहीं भर जाता वह
घट में से जो
यदि रीतता
यह और कहीं
में जो जाता
रहता
हठपूर्वक वहीं
फिर सरल सहज
वह
नहीं बीतता
तीन
यह समर
चुपचाप जो
चल रहा
भीतर कहीं
इसका प्रथम
अज्ञात है
इसमें पराजय
पाता न
कोई
और न कोई
जीतता
- पुस्तक : साक्षात्कार 290 (पृष्ठ 19)
- संपादक : हरि भटनागर
- रचनाकार : सुधीर मोता
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