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सैनिक का हृदय

sainik ka hriday

अलेक्सांद्र प्रोकोफ्येव

अन्य

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और अधिकअलेक्सांद्र प्रोकोफ्येव

    एक सैनिक का हृदय

    संगीन से बेधा गया

    जब वह गिरा

    तब रक्त धीरे से बहा

    और भू पर एक धब्बा पड़ गया

    बाद इसके क़ब्र में दफ़ना दिया

    मित्र सब सम्मान में उसके झुके

    और बंदूक़ें कई दाग़ी गईं

    शाम जब फिर से हुई

    फिर दुबारा गोलियाँ दाग़ी गईं

    नील-लोहित धूम ऊपर उड़ गया

    नील-लोहित तारकों ने

    व्योम से देखा

    नील-लोहित पवन

    जल्दी पास से गुज़रा

    ईगल उड़ गया

    अब नहीं सैनिक रहा

    फ़सल काटेगी अकेली ही

    खेत में बीबी

    किंतु सैनिक क्रांतिकारी चीख़ता है

    मर नहीं सकता कभी मैं

    मैं नहीं अब तक मरा हूँ

    मैं मरूँगा भी नहीं

    तभी थर्राहट हुई

    दीवार जो घेरे हुए थी

    उसमें दरारें पड़ गईं

    और सैनिक के हृदय से

    सेब-तरु की शाख फूटी

    फिर बड़ी हो वह

    ख़ुशी से झूमती है

    मक़बरे पर

    औ’ गुलाबी श्वेत फल

    उस पर गिराती है

    वह पहाड़ी पर

    हवा साथ झुकती-झूमती है

    सैनिक के हृदय की शिरा

    अब तक धड़कती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 142)
    • रचनाकार : अलेक्सांद्र प्रोकोफ्येव
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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