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सच

sach

हरे प्रकाश उपाध्याय

अन्य

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और अधिकहरे प्रकाश उपाध्याय

    सच्चे जीवन में बोलना रोज़ निरंतर झूठ

    प्रेम में देह के पीछे पड़ना

    यूँ शिद्दत से रोना

    और जान-बूझकर सब खो देना

    नियम से पीना शराब

    सिगरेटों के धुएँ में बस जाना

    बढ़ती जा रही है आवारगी जीवन में

    और सब कुछ खुल्लम-खुल्ला

    कुछ भी छिपा नहीं रहा हूँ

    और बदनाम होता जा रहा हूँ

    जितनी बुराइयाँ हैं जीवन में

    सौ फ़ीसदी ज़्यादा अफ़वाहें हैं समाज में

    इस तरह जल्दी घृणित हो जाऊँगा

    सबकी घृणा के बावजूद जीना

    यह कैसा अनुभव होगा?

    पर हाय इस समाज में

    घृणा भी कितनी कम है

    प्यार तो है ही कम

    देखो कैसा कुहासा पसरा है

    इसे ही समझ रहा हूँ

    सच्चे जीवन में झूठी ज़िंदगी जी रहा हूँ

    फिर भी सच्चाई इतनी

    कि सब सच-सच बता रहा हूँ...।

    स्रोत :
    • रचनाकार : हरे प्रकाश उपाध्याय
    • प्रकाशन : हिंदी समय

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