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सभ्यताओं का स्वर्णकाल

sabhytaon ka swarnkal

जावेद आलम ख़ान

अन्य

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जावेद आलम ख़ान

सभ्यताओं का स्वर्णकाल

जावेद आलम ख़ान

और अधिकजावेद आलम ख़ान

    सभ्यताओं के स्वर्णकाल में

    हथियारों की खेती हुई और हवस की पूजा

    इतनी कि परियों को छुपाना पड़ा कोहेकाफ़ में

    ख़ून के रंग वाली धरती और धुएँ के आकाश से बने क्षितिज पर

    एक कृत्रिम इंद्रधनुष बनाने के लिए

    अनगिनत तितलियों को चढ़ानी पड़ी अपनी बलि

    ज़मीन के सीने पर दरार उभर आई थी

    दो महाध्रुवों की ओर दुनिया खिंच रही थी

    इतनी कि जैसे रस्सियों से बँधे पैरों वाला मनुष्य

    दो अलग-अलग दिशाओं की भीड़ के खींचने पर

    बीच से चिरता जाता है

    यह खींचतान ज़मीन से लेकर आसमान तक फैली थी

    प्रकृति के दो स्थायी रंग सदियों से ज़ंग में थे

    काले और सफ़ेद के शीतयुद्ध में

    संतुलन साधक थे बचे हुए रंग

    कि एकाएक ख़बर उड़ी सूरज

    नई दिशा में करवट ले रहा है

    निज़ाम बदल रहा है ब्रह्मांड का

    धूर्त क़लमचियों ने काले रंग को लिखा पाप

    ज़रख़रीद संगतराशों ने काले रंग के बनाए दस सर

    रंगबाज़ों ने अपनी सुविधानुसार साँवले रंग का अविष्कार किया

    काले कारनामे गोरे रंग में छिपकर आए

    काली त्वचा बेदख़ल हुई सभ्यताओं की दास्तान से

    जिन बिल्लियों को मिला काला रंग

    प्रकृति के समस्त अपशकुन उनके अनुगामी हुए

    उनकी सरपरस्ती में हुए दुनिया के तमाम हादसे

    उनकी काया की छाया में शरणार्थी हुए अँधेरे

    जिन पंछियों को मिला काला रंग

    उन पर चालाकी का टैग चस्पाँ कर दिया गया

    उनकी कर्कश और कोमल ध्वनियों को छोड़कर

    साहित्य उनकी फ़ितरत को काले अक्षरों से रँगकर

    मतलबपरस्ती के मुहावरे गढ़ता रहा

    जिन इंसानी नस्लों को मिला काला रंग

    उन्हें सभ्यता का दुश्मन मानकर

    सभ्य दुनिया की गाड़ी में जोत दिया गया

    उनको मारना पाप की जगह पुण्य कहलाया

    इतना कि इनके हत्यारे देवता की पदवी से विभूषित हुए

    सभ्यताओं के इतिहास रंगों की क़लम से लिखे गए

    जहाँ काला रंग अपमान का पर्यायवाची लिखा गया

    और उन्हें जन्मजात दास समझने वाली बर्बरता

    गोरे रंग में छिपकर सभ्यता कहलाई

    राष्ट्रवाद उसी सभ्यता का आधुनिक अवतार है

    जो राजतंत्र में रंगों के श्रेष्ठताबोध में छिपा था

    और लोकतंत्र में धर्मांधता की भीड़ के

    दरअसल राष्ट्रवाद देश की किताब में वह पवित्र शब्द है

    जिसका मौन वाचन देश की जनता करती है

    और सस्वर पाठ हिंसक गतिविधियों में लिप्त ठेकेदार

    स्रोत :
    • रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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