Font by Mehr Nastaliq Web

रियायत

riyayat

सपना भट्ट

अन्य

अन्य

सपना भट्ट

रियायत

सपना भट्ट

और अधिकसपना भट्ट

    रसोईघर में एकदम ठीक अनुपातों में ज़ायक़े का ख़याल

    कि दाल में कितना हो नमक

    जो सुहाए पर चुभे नहीं,

    कितनी हो चीनी चाय में

    कि फीकी लगे और

    ज़बान तालु से चिपके भी नहीं…

    इतने सलीक़े से ओढ़े दुपट्टे

    कि छाती ढकी रहे

    पर मंगलसूत्र दिखता रहे,

    चेहरे पर हो इतना मेकअप

    कि तिल तो दिखे ठोड़ी पर का

    पर रात पड़े थप्पड़ का

    सियाह दाग़ छिप जाए…

    छुए इतने ठीक तरीक़े से कि

    पति स्वप्न में भी जान पाए

    कि उसके कंधे पर दिया सद्य तप्त चुम्बन उसे नहीं

    दरअसल उसके प्रेम की स्मृति के लिए है…

    इतनी भर उपस्थिति दिखे कि

    रसोईघर में रखी माँ की दी परात में उसका नाम लिखा हो

    पर घर के बाहर नेम-प्लेट पर नहीं,

    कि घर की किश्तों की साझेदारी पर उसका नाम हो

    पर घर गाड़ी के अधिकार-पत्रों पर कहीं नहीं।

    कुछ इतना सधा और व्यवस्थित है स्त्री-मन

    कि कोई माथे पर छाप गया है :

    तिरिया चरित्रम्…

    जिसे देवता भी नहीं समझ पाते,

    मनुष्य की क्या बिसात…

    और इस तरह स्त्री को

    ‘मनुष्य’ की संज्ञा और श्रेणी से बेदख़ल कर दिया गया है…

    इतनी असह्य नाटकीयता और यंत्रवत अभिनय से थककर

    इतने सारे सलीक़ों, तरतीबी और सही हिसाब के बीच

    एक स्त्री थोड़ा-सा बेढब बे-सलीक़ा हो जाने

    और बेहिसाब जीने की रियायत चाहती है…

    स्रोत :
    • रचनाकार : सपना भट्ट
    • प्रकाशन : सदानीरा वेब पत्रिका

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए