मात्र अपना लेल
आइ
एको पाँती
हम लिखि नहि सकलहुँ
जिनगीक बाटपर
हमर अर्थी बाहर भऽ गेल छल
शब्दक जालमे फंसल
हम लहरिक प्रतिक्षा करैत छी
मानवसँ नहि
प्रत्युत मानवीयतासँ डेराइत छी
पछिला बेर
ई हमरा विचित्र तरहें गछारने छल
आ अपन गर्म अंकमे
हमरा जिनगीक रस चटौने छल
किन्तु समय साक्षी आछि
हमर अस्तित्व
एकटा खढ़ोसँ गेल-बीतल अछि
स्तरक बात
भला हम की जानब?
मात्र विरोधाभासेमे
जीबाक आदति पड़ि गेल अछि
धरतीक स्वर्णिम स्वप्नसँ
अपनाकेँ फराक राखि
हम एकटा दुनिया बसौने छलहुँ
ओ स्वयं कुमारि छल
या अपनासँ हारि थाकल छल
एतेक पैघ नाम बाट
तय कयलाक पश्चात्
हम मात्र अर्थहीनताक राज पौलहुँ अछि
आ मात्र यैह अर्थहीन जिनगी
जीबाक हेतु हम विवश छी
जीवनक रक्तहीनता
शून्यता
आ पाप-बोधक दस्तावेज
हमर रचना अछि
शब्दक स्तूप
आ विचारक धमनी
आइ वास्तविक छैक
समग्र
चेतनाक प्रतिफल
प्रतीति छैक
जीवन मात्र धोखा छैक
आवाजक घेरमे
बस एकेटा छवि छैक
जीवन साँझ बनि गेल
हाथ किछु लागल नहि
तेयो हम चलैत छी
स्वयं के धोखा दैत
हम आगाँ बढ़ैत छी
काल्हुक सूर्य
नव किरण लऽ कऽ उगतैक
विश्वास अछि
किन्तु आशा के जोगौने
जिबैत रहब
सेहो एकटा पैघ धोखा छैक
जीवनक अर्थ
आइ समग्र रूपें चुकि गेल छैक
यथार्थकेँ
ओकर सम्पूर्ण अर्थहीनताक संग
ग्रहण करब
हमर विवशता अछि
सामर्थ्यमे निहित
मात्र यैहटा सत्य अछि
- पुस्तक : आजुक कविता (पृष्ठ 12)
- संपादक : रामलोचन ठाकुर
- रचनाकार : रमानन्द रेणु
- प्रकाशन : अरुणोदय प्रकाशन, कलकत्ता
- संस्करण : 1984
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