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रात मेरी रात

raat meri raat

मनोज कुमार पांडेय

मनोज कुमार पांडेय

रात मेरी रात

मनोज कुमार पांडेय

तेरे फ़ोन के इंतज़ार में रात को रोके रखता हूँ

रात मेरे हुक्म की ग़ुलाम सही पर वो

इंतज़ार करती है कि मैं तुझे अपनी आँखों में

कहीं भीतर छुपा लूँ तब वो आए

दिन एक लंबा पथरीला रास्ता है

जिस पर चलना होता है मुझे तुम्हारी ही खोज में

मेरी प्यारी रात जानती है यह बात

वह मेरी सिगरेटें ख़त्म होने का इंतज़ार करती है

मुझे मोहलत देती हुई कि मैं आग को जी भर चूमूँ

और भर लूँ अपनी साँस और ख़ून में

मेरे जिस्म का रंग गेहुँआ है जो तेरे बदन का रंग है

रात मेरी रात आती है मुझे अपनी बाँहों में लेने

मैं उसकी दी हुई शराब पीता हूँ और उसके जादुई

बदन में अपने को गुम कर देता हूँ

वो मुझसे लिपटती है मेरी जान

वो मुझे खाती है मैं उसे

मैं उसकी बाँहों में मज़े से मर जाता हूँ

स्रोत :
  • रचनाकार : मनोज कुमार पांडेय
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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