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क़त्ल की रात कल ही गुज़री है

qatl ki raat kal hi guzri hai

सविता सिंह

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सविता सिंह

क़त्ल की रात कल ही गुज़री है

सविता सिंह

और अधिकसविता सिंह

    है सुबह की पहली ताज़ी हवा की सुगंध

    हृदय में अब भी बची

    मुस्कान अपने ही उस प्रेम के एहसास में

    जिसे भुलाना जरूरी हो गया है

    दुख बहुत है इस समय में सबके लिए

    उम्मीद फिर भी करनी है सुख की

    ख़ून के धब्बे दिखते हैं शहर की इमारतों पर

    क़त्ल की रात कल ही गुज़री है

    स्रोत :
    • पुस्तक : नींद थी और रात थी (पृष्ठ 106)
    • रचनाकार : सविता सिंह
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2005

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