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पुरस्कार-समारोह

puraskar samaroh

कुबेर दत्त

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कुबेर दत्त

पुरस्कार-समारोह

कुबेर दत्त

और अधिककुबेर दत्त

    जीवन के सच का

    जीवन के झूठ से यह

    क्या अजब साक्षात्कार

    मिल रहा है पुरस्कार

    कवि को।

    भाषा पर

    अभाषा का लेप

    दुखती रगों पर सत्ता का संकीर्तन।

    सृजन के श्मशान में रजधनी मंडप

    उसमें

    अकर्मक

    सकर्मक पपेट शो।

    सिर के बल विदूषकीय नर्तन।

    रूप पर

    विरूप की तुरप

    उठ—

    गिर रही है

    हुड़क

    नाभि से नाभि में।

    घुड़क रहीं

    अदृश्य आँखें,

    साहस के छौनों को।

    सब कुछ गडम् गडम्

    गुड़मगोबरम्।

    दृश्य यह अति लौकिक

    फिर भी अलौकिक परम

    बमक रही

    बबमबम बबमबम

    बमलहरी नव

    आह क्या उत्सव!

    राजदरबार-सा

    सजा है

    साहित्यिक मंच

    उफ़ कितनी भीड़भाड़

    जगह नहीं बची रंच

    चंदनी विटप से

    लिपट-लिपट जाते हैं भुजंग

    उर्फ़ लेखन के जंगजू...

    बाहर-बाहर गायन

    भीतर-भीतर चीत्कार

    मिल रहा है पुरस्कार

    कवि को।

    कुछ बुत

    कुछ अर्द्धबुत

    कुछ लधु मानव

    और

    कुछ अतिविशिष्ट अतिमानव

    मानव को

    दाबे, दबोचे डाले दे रेहे हैं

    उत्तरीय,

    गले में पटका

    या पट्टा—

    लिखने को

    रचने को

    महाजनी किताब;

    कहने को महज़

    आदाब आदाब

    साहाब साहाब।

    संभावनाओं के

    मृत जीवन-राग गा रहे

    स्टीरियो स्पीकर।

    पड़ रहा

    झर रहा

    है

    रुआब।

    क्या मज़ेदार समाहार!

    अपकारी रौनक़ में

    इतनी बड़ी सजधज?

    इधर-उधर पत्रकार

    फ़ोटोकार

    बाहर से मिष्टी-मिष्टी

    भीतर से खार-खार...

    कवि की

    मुंडीश्री

    फिरकी-सी घूमती है।

    कवि-दृष्टि

    बूटों की चकमक को

    चूमती है।

    अनमोल रचनाओं को

    प्राप्त हुए कुछ हज़ार

    मिल रहा है पुरस्कार

    कवि को।

    स्रोत :
    • पुस्तक : काल काल आपात (पृष्ठ 27)
    • रचनाकार : कुबेर दत्त
    • प्रकाशन : किताब घर
    • संस्करण : 1994

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