पिताजी हाशिए पर थे
इसलिए काग़ज़ पर भी हाशिया नहीं छोड़ते थे
कहते—छोटे अक्षर लिखो!
काग़ज़ पूरा भरो!
कहीं भी खाली जगह न रहे!
उनके संसार मे खाली जगह कम थी
कहते—रफ़ काम स्लेट-बत्ती पर करो!
दोस्तों को गृहकार्य की कॉपी दो
तो स्याही के धब्बे गिनकर दो
पैसा माँगो तो आगबबूला हो जाते
कहते—चीज़ों के लिए पागल मत बनो
पहली बात तो ज़रूरत पड़नी ही नहीं चाहिए
फिर भी पड़े तो पैसे अकेले में माँगो
कहते—ठोकर न लगेगी नीचे देखकर चलो!
उड़ाऊ-खाऊ लड़कों से बचो!
झगड़े की जगह मत जाओ!
घर से निकलो तो दीया-बत्ती से पहले लौट आओ!
चिमनी ऊपर और किताब नीची रखो!
घर को घर मानो और घर देखकर चलो!
सब मिलकर लालटेन में पढ़ो!
रौशनी का बराबर बंटवारा करो!
दूसरे के हिस्से की चीज़ मत खाओ!
और अब एक मेरा बेटा है
आस-पास से पूरी तरह अपरिचित
एक च्वाइस है उसकी
चीज़ों को चुनकर खाता है
कम डाइट के बाद भी
अच्छी हाइट पकड़ ली है उसने
कभी किसी से रास्ता नहीं पूछता
और कभी भटकता भी नहीं है
अपने-अपने में ही रहता है
हमारी जेबो में अकसर पैसे नहीं होते थे
वह जेब में बहुत कम रुपए रखता है
और नगद रुपयों को कैश कहता है
उसके भीतर न डर है न अंजानी असुरक्षा
मेरी बातें सुनकर देर तक हँसता है
मुझमें और उसमें यही फ़र्क़ है
मैं मटका बजाता था वह गिटार बजाता है।
- रचनाकार : हरिओम राजोरिया
- प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित
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