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पुराना घर ख़ाली करते हुए

purana ghar khali karte hue

अनुवाद : रणधीर उपाध्याय

बालमुकुंद दवे

अन्य

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बालमुकुंद दवे

पुराना घर ख़ाली करते हुए

बालमुकुंद दवे

और अधिकबालमुकुंद दवे

    फिर-फिरकर सब ओर टटोला और ख़ासा हाथ भी लगा

    पुराना झाडू, टूथब्रश और लक्स साबुन की बट्टी,

    टूटी शीशी, टिन का डिब्बा, कानी बाल्टी,

    टूटा चश्मा, क्लिप, बटन और आलपीन-सुई-धागा।

    द्वार पर लगी अपने नाम की रोज़ लटकती तख़्ती उतार ली,

    औंधी रख दी ठेले में; (सब कुछ) सौंप कर विदा किया।

    रुके आख़िरी बार नज़र दौड़ाकर देख लेने वह भूमि—

    जहाँ बिताया प्रथम दशक मुग्ध दांपत्य का;

    जहाँ देवों के परम वर-सा पुत्र पाया अत्यंत प्रिय

    और जहाँ पर ही कठोर हृदय होकर (उसे) अग्नि के अंक में सौंपा।

    आज वह कोने से निकलकर मानो सहसा बोल उठता है—

    “बा-बापू। और तो कुछ भी नही भूले, एक मुझे ही भूल गए?

    मेरे सजल दृग में काँच की एक पैनी कनी चुभी और

    उठाए हुए इन क़दमों पर ये लोहे के मन-वजन कैसे!

    स्रोत :
    • पुस्तक : भारतीय कविता 1954-55 (पृष्ठ 259)
    • रचनाकार : बालमुकुंद दवे
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी

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