Font by Mehr Nastaliq Web

पूरबी

purabi

आकृति विज्ञा 'अर्पण’

अन्य

अन्य

और अधिकआकृति विज्ञा 'अर्पण’

    तरसेला सपना के सीवनवा हो धनिया

    दुख ना सहाता

    दुख ना सहाता हमसे दुख ना सहाता 

    सून लागे तोरी बिन अंगनवा हो

    संवरी दुख सहाता...

    अइतू जो अंगना हमरे 

    लेके तिउहार सब 

    दस रे दिसा रे संवरी 

    होते बलिहार सब 

    तोह ईं के जोहेला नयनवा रे

    धनी दुख सहाता...

    कटे उमरिया काटे 

    दर दर बखतवा

    कटि जाईं छन भर में 

    पाइ तोहरो सथवा

    छेड़ि देतू साथ के तरनवा 

    रे धनि दुख सहाता

    तरसेला सपना के सीवनवा हो धनिया

    दुख ना सहाता

    दुख ना सहाता हमसे दुख ना सहाता 

    सून लागे तोरी बिन अंगनवा हो

    संवरी दुख सहाता...

    स्रोत :
    • रचनाकार : आकृति विज्ञा 'अर्पण’
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए