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पुनरागमन

punragaman

चंद्रकांत देवताले

अन्य

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और अधिकचंद्रकांत देवताले

    तमाम हास्यास्पद षड्यंत्रों के बावजूद

    वह आज फिर निकल रहा है

    और वक्तव्यों की चिकनाई पर फिसलने से

    बचने के लिए

    ढूँढ़ रहा है खुरदरी ज़मीन...

    भाषा और दरख़्तों वाली पहचान

    कहने के लिए

    मौन रहना

    कितना कठिन था कल तक का सब कुछ

    मृत मन का उजाला

    और जीवित देह के अँधेरे का

    कटा बदहवास भद्दा आसमान...

    यह फुफकारते काले नाग का

    उत्सव नहीं होगा

    अभिव्यक्ति की दुर्घटना के नाम पर

    पीपल पत्ते कुतरती बकरी का

    आलीशान इतवार तो

    कदापि नहीं होगा...

    फूहड़पन पर लेटकर

    डकारने की प्रक्रिया के विरोध में

    उसका आना

    किसी प्रतिष्ठा की खूँट पर

    कुछ भी टाँगने का

    उपक्रम नहीं होगा

    पत्थरों के बीज

    और बिच्छुओं के स्पर्श लेकर

    पतझर के दर्पण जैसी कविता की नंगी हथेली पर

    वह हरगिज़ नहीं टपकाएगा

    किसी की नाम की हवाओं से

    निचुड़ता शब्द का शहद...

    तो फिर उसके पुनरागमन को

    मैं क्या कहूँ

    मैं दर्शक नहीं अँधेरा हूँ

    और वह सूरज नहीं

    शायद...

    पता नहीं क्या है...

    स्रोत :
    • पुस्तक : जहाँ थोड़ा-सा सूर्योदय होगा (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : चंद्रकांत देवताले
    • प्रकाशन : संवाद प्रकाशन
    • संस्करण : 2008

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