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पवन कथा

pavan katha

दर्शन बुट्टर

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दर्शन बुट्टर

पवन कथा

दर्शन बुट्टर

और अधिकदर्शन बुट्टर

     

    जिज्ञासा

    पुलों के नीचे से 
    कितना पानी गुज़र चुका है गुरुदेव!
    तू पूछ के बता लाँघती हवा से

    तारीख़ की वादियों में विचरती 
    कितनी ख़ुश्क हो गई है हवा 
    अपनी सारी नमी 
    मेरी आँखों में उड़ेल कर 
    यह किधर जा रही है

    पड़ी हो धुँध की हुकूमत 
    हवा का ख़ौफ़ किसका 
    क्यों छिपती है यह 
    ऋतुओं के सिपाहियों से

    हवा का चेहरा 
    धुएँ से क्यों मिलता 
    क्यों आती है तपिश महक में से 
    ज़रूर कहीं फूल जलते होंगे

    अभी तो मैं चुनती हूँ 
    किनारे पर पड़ी सीपियाँ 
    पढ़ती हूँ 
    रेत पर लिखी लिपियाँ

    अभी तो, ज़ख़्म सहलाती हूँ मैं 
    उतरूँगी दर्द के पाताल में भी
    तू मुझे ताज़ा हवा का झोंका दे 
    कि गोता न खाए मेरी पतंग 
    कि गहरे हो जाएँ मेरे रंग

    इससे पहले 
    कि रुक जाए मेरा वेग 
    शांत हो जाए रूह का खौलता पानी 
    तू मुझे ताज़ा हवा का झोंका दे...


    गुरुदेव

    गहरा विश्वास चाहिए मल्लाहों में 
    मुश्किल नहीं हवा का रुख़ बदलना

    पुलों के नीचे से गुज़रे पानी का हिसाब तो 
    पर आगे चले जाइए 
    इसको पानी में बहा कर
    कोई-कोई लफ़्ज़ ही उघड़ता 
    हवा के पृष्ठ पर 
    कोई-कोई परिंदा ही उड़ता 
    हवा के ख़िलाफ़

    हवा की नमी 
    आँखों से सँभालनी आ जाए 
    तो धकेल सकते हैं पहाड़ भी

    हवा की तपिश 
    अंगों में भरना आ जाए तो 
    जला सकते हैं भीतरी कबाड़ भी

    हवा के रंग 
    साँसों में घोलना आ जाए 
    तो झूल सकते हैं इंद्रधनुष की पींगे

    अभी हमें सीखना है बहुत कुछ 
    पत्तों से खेलती हवा से 
    हवा के आसरे जलते दीयों से 
    ग़ुब्बारों पतंगों से 
    हवा संग उड़ते परों से

    अभी हमें जाना है बड़ी दूर 
    निगाहों से भी आगे 
    तारों के झुरमुट से भी पार, हवाओं से भी तेज़

    अभी हमें 
    राह बन कर पैरों तले बिछना 
    घास बन कर ऊसर में उगना 
    हवा बन कर दराज़ों में से गुज़रना है

    अभी हमें जाना है बड़ी दूर...

    स्रोत :
    • पुस्तक : महाकंपन (पृष्ठ 45)
    • रचनाकार : दर्शन बुट्टर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2016

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