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पुनर्वास

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मनोज कुमार झा

अन्य

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मनोज कुमार झा

पुनर्वास

मनोज कुमार झा

और अधिकमनोज कुमार झा

    यकायक इतना प्रकाश

    मैं कुछ भी नहीं देख पा रहा

    होता जाता है चित्त चोटिल और बरसता जाता है प्रकाश मूसलाधार

    मुझे प्रकाश के भीतर का दूध वापस दे दो।

    किसने फोड़ा इतनी जोड़ से नारियल कि इसके भीतर का पानी धुआँ हो गया

    मुझे डाभ के भीतर का जल लौटा दो।

    एक नाम, दो नाम, तीन नाम, दस नाम

    नाम पट्टिकाओं से टकराकर मेरी साँस फट रही है

    मुझे नामपट्टिका नहीं ठोस जलमय चेहरा दिखाओ।

    इस झाड़ी में कुछ था जो त्वचा की गंध बदल देता था

    मुझे वो सब कुछ वापस करो—सभी गंध और सारी झाड़ियाँ।

    मेरी इंद्रियाँ मेरी देह के भीतर ही रास्ते भूल गई हैं

    मुझे जाने दो अपनी इंद्रियाँ वापस पाने

    और सब कुछ यहीं—इसी देश

    में, इसी काल में

    इसी धूल में, इसी घाम में।

    स्रोत :
    • रचनाकार : मनोज कुमार झा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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