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प्रिय बकुल के लिए

priy bakul ke liye

विनोद पदरज

अन्य

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विनोद पदरज

प्रिय बकुल के लिए

विनोद पदरज

और अधिकविनोद पदरज

    मैं प्लेट में चाय डालकर पीता हूँ

    पर प्लेट में नहीं

    रकाबी में पीता हूँ

    घर से निकलता हूँ

    तो जूतों के फ़ीते बाँधता हूँ

    पर जूतों के फ़ीते नहीं तस्में बाँधता हूँ

    बेल्ट नहीं

    कमरपट्टा कसता हूँ

    मैं होटल में धर्मशाला में रुकता हूँ

    पर होटल धर्मशाला में नहीं

    सराय में रुकता हूँ

    मुझे पसंद है आदाब

    ज़र्रानवाज़ी

    बजा फरमाया

    मैं धन्यवाद कहता हूँ

    पर धन्यवाद नहीं शुक्रिया कहता हूँ

    मुझे साढ़ू शब्द बिल्कुल पसंद नहीं

    पर हमज़ुल्फ़ पर फ़िदा हूँ

    मुझे मौलवी से उतनी ही नफ़रत है

    जितनी पंडित से

    बादशाह को अर्दब में लाना

    मेरा मक़सद है

    मुझे हुस्न-ओ-इश्क़ की शायरी बकवास लगती है

    यह भी क्या बात हुई

    कि आदमी ख़ुद को इश्क़ कहे

    यानी रूह

    और औरत को हुस्न कहे

    यानी जिस्म

    सालों तक किताबों की जिल्द बँधवाता रहा

    पर उस दिन हैरत में डूब गया

    जिस दिन एक हकीम ने मेरी त्वचा देखकर कहा

    जिल्द देखकर आदमी की सेहत का पता लगता है

    बस तभी से मैं औरतों से कहता हूँ

    जिल्द से सुंदर होती है किताब

    आदमियों से कहता हूँ

    सुंदर और मज़बूत जिल्द के भीतर जो किताब है

    उसकी रूह को बाँचा जाना ज़्यादा ज़रूरी है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विनोद पदरज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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