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प्रेम पत्र

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प्रियंकर पालीवाल

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प्रियंकर पालीवाल

प्रेम पत्र

प्रियंकर पालीवाल

और अधिकप्रियंकर पालीवाल

    काग़ज़ की नाव पर

    तुम नहीं सकती

    पर सकते हैं

    तुम्हारे शब्द

    निःशब्द

    सुबह की उजली

    नर्म धूप की तरह

    मन के आँगन में

    उतर आता है

    तुम्हारा स्नेह

    कुछ यूँ कि

    जैसे झरते हों

    रजनीगंधा के सूखे फूल

    आहिस्ता से

    फूल शुभकामना के

    जिन्हें तुम भेजती हो धड़कते हृदय से

    मैं भी स्वीकारता हूँ

    कंपकंपाती अंजुरियों से ही

    स्वीकार्य के बाद ही तो आती है

    वह शक्ति

    जिसके लिए विख्यात हैं

    मनु के वंशज

    स्नेह का स्वीकार्य तो

    हर सकता है

    जीवन के सब दाह

    दंश पीड़ा और शूल

    स्नेह का स्वीकार्य ही सिखा सकता है

    बहना धारा के प्रतिकूल

    आज समझा हूँ

    अभिव्यक्ति की इस सच्चाई को

    कि क्षण चाहे अजर-अमर भी हों

    पूर्ण होते हैं

    सेतु चाहे काग़ज़ के हों

    महत्वपूर्ण होते हैं

    जब सब कुछ सीमाओं में क़ैद हो

    तब भी सकते हैं

    बिना किसी पारपत्र के

    मेरे ठोस शब्दों के उत्तर में

    तुम्हारे वे तरल शब्द

    मेरे जटिल प्रश्नों के उत्तर में

    तुम्हारे वे सरल शब्द।

    स्रोत :
    • पुस्तक : वृष्टि-छाया प्रदेश का कवि (पृष्ठ 26)
    • रचनाकार : प्रियंकर पालीवाल
    • प्रकाशन : प्रतिश्रुति प्रकाशन
    • संस्करण : 2015

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