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प्रतिसंसार

pratisansar

अंद्रेई वोज़्नेसेंस्की

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और अधिकअंद्रेई वोज़्नेसेंस्की

    एक क्लर्क

    मेरे घर के बराबर में रहता है

    रंग-रूप जिसका स्याही-सोख जैसा है

    उसके सिर पर

    जहाँ कभी बाल घुँघराले थे

    हवा से भरे ग़ुब्बारे-से

    वहाँ अब चमकते हैं प्रतिसंसार

    और वहाँ सर्वशक्तिमान प्रभु का सहायक

    एक पिशाच-ग्रस्त जादूगर

    एक प्रति-क्लर्क विद्वान

    एफ्रोदिते की बाहों में करता आराम

    किंतु प्रति-क्लर्क यदा-कदा स्वप्न देखता है

    स्याही-सोख के रंग-रूप का

    प्रतिसंसार तुम बहुत दिन जिओ

    बहुत दिन जिओ

    बेढंगी दुनिया में स्वप्न बने

    मूर्खों के बिना नहीं होते हैं बुद्धिमान

    और रेगिस्तानों के बिना नख़लिस्तान

    औरतें क्या हैं

    कुछ नहीं

    सिर्फ़ प्रति-पुरुष हैं

    प्रति-मशीनें गरजती हैं घाटी में

    धरती से मिलता है नमक और गाद भी

    पृथ्वी बिना सूर्य का महत्त्व मामूली है

    मेरे आलोचक मैं भीड़ को करता हूँ प्यार

    उन्हीं में से एक अपने घुटने की तरह नंगी

    और सीसे की तरह चमकदार

    एक हाँडी दिखाता है

    जो पूरी तरह नमूना है

    जो पूरी तरह नमूना है

    प्रति खोपड़ी का

    मैं रातों को खुली खिड़कियों के पास सोता

    जबकि किसी दूसरी जगह दिन होता है

    वे मुझे बताते हैं

    वहाँ अवशैलों-सी उल्टी गगनचुंबी इमारतें

    धरती की कोख से लटकी हैं

    ...मेरे मित्र

    एक प्राध्यापक ने कहा है—

    बिल्कुल बेकार है प्रतिसंसार

    इसीलिए अब मैं परेशान हूँ

    दुःस्वप्नों से जागकर रात में

    मेरी बिल्ली की हरी आँखें

    वायरलेस जैसी हैं

    जिनमें से सारी दुनिया गुज़रती है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : एक सौ एक सोवियत कविताएँ (पृष्ठ 272)
    • रचनाकार : अंद्रेई वोज़्नेसेंस्की
    • प्रकाशन : नेशनल पब्लिशिंग हाउस, दिल्ली
    • संस्करण : 1975

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