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मायूसी एक ढोंग है!

mayusi ek Dhong hai!

कृति राज

अन्य

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कृति राज

मायूसी एक ढोंग है!

कृति राज

और अधिककृति राज

    धीरे-धीरे पसर रहा है अँधेरा...

    चिड़ियाँ कबकी लौट चुकी हैं अपने नीड़ को

    जुगनू छिप गया है हरी—काली पत्तों के बीच

    रात में अब कठफोड़वे काठ नहीं, बोतल फोड़ते हैं

    रात-रानी गंधहीन हो गई है

    उल्लू सो रहे हैं

    चंपा चुप है

    गुलमोहर तले कोई प्रेमपथिक विश्रामरत नहीं है

    बोगनवेलिया के सारे फूल झड़ गए हैं और

    ज़मीन पर चादर-सा हो रखा है मानो मेरी क़ब्र सजाने आए हों

    मुझे याद है तुमने कहा था—

    कितने फूल

    कितनी ख़ुशबू

    कितनी रंग-ओ-आब

    पसंद मुझे

    सिर्फ़

    दिया तुम्हारा गुलाब

    अफ़सोस...

    कि अब गुलाब की सारी पंखुड़ियाँ भी एक-एक कर बिखर गई हैं

    गुड़हल सड़ कर बजबजा रहा है

    गेंदे में गेंदापन नहीं

    कमल कीचड़ से सना है

    सेमल राह चलते लोगों के सिर पर गिर आता है

    कि लोग चुनते नहीं, पैरों तले मसल देते हैं

    पलाश की तलाश में भटकन जारी है

    अमलताश सूर्य के ताप में तप चुका है

    तारे बादलों के मच्छरदानी में छिप गए हैं

    सूर्य अपने घर में दुबकने जा रहा है

    धीरे-धीरे पसर रहा है अँधेरा...

    कि

    पास खड़ा कैक्टस

    गहरी साँस भरता हुआ जोर से खिल-खिलाता है

    कहता है—

    अब तुम उसे फूल नहीं कोई काँटा दो

    सुनो...

    ये मायूसी निहायत आच्छादित ढोंग है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कृति राज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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