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पितरपख

pitarpakh

अपूर्वा श्रीवास्तव

अन्य

अन्य

और अधिकअपूर्वा श्रीवास्तव

    हमारे पूर्वज

    तस्वीरों से अधिक पेड़ों में रहते हैं

    जड़ों में पसरी है उनकी आँखें और

    नसों में पूरी होती है—

    फ़ोटोसिंथीसिस की प्रक्रिया

    वही पकाते हैं आम

    सुखाते हैं पत्ते

    झेलते हैं बेना

    भर पितरपख पानी दो पेड़ों को

    ताकि तर रहे उनका कंठ और

    हरी रहे वसुधा

    हमारे पूर्वज

    ताबूतों से अधिक मिट्टी में रहते हैं

    जिसे माथे पर लगाते ही

    बोल उठते हैं वे

    विजयी भवः विजयी भवः

    मिट्टी का भूरापन

    उन्हीं के अनुभवों का रंग है

    उन्हीं के संघर्षों का

    भर पितरपख मत उड़ेलो

    कोई रसायनी पदार्थ मिट्टियों में

    ताकि लौट सकें वे

    लौट सके— मिट्टी में उर्वरता।

    हमारे पूर्वज

    अस्थियों से अधिक जल में रहते हैं

    सूखी नदी और पोखर के तल में रहते हैं

    जलाशयों के जल का सूखना

    आँसू सूखने जैसा है

    भर पितरपख मत होने दो सुखाड़

    अपनी आँखें, अपनी नदियाँ

    मछलियाँ उनकी सहेली है

    कहाँ जाएँगी वे

    कहाँ जाएँगे पितर?

    स्रोत :
    • रचनाकार : अपूर्वा श्रीवास्तव
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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