Font by Mehr Nastaliq Web

पिताओं में इतना धैर्य कहाँ से आता है?

pitaon mein itna dhairya kahan se aata hai?

गौरव सिंह

अन्य

अन्य

गौरव सिंह

पिताओं में इतना धैर्य कहाँ से आता है?

गौरव सिंह

और अधिकगौरव सिंह

    वे उन समयों से आते हैं

    जिनमें एक चिट्ठी को पहुँचने में इतना वक़्त लग जाता

    कि कई बार आम के बौर पके आमों में बदलने लगते

    चिट्ठी पहुँचने तक नवप्रसूता गायें छुटान पर जातीं

    और चिट्ठी के भीतर लिखा हुआ मौसम बदलकर झूठ बन जाता...!

    उनके पिताओं को ऐतराज़ नहीं होता था ज़ख़्मों से

    ज़ख़्मों को ऐतराज़ नहीं था धूल-मिट्टी और पानी से...

    और त्वचा को ऐतराज़ नहीं था चोट के निशानों से

    हर निशान अपना पूरा समय लेकर जाता था शरीर से...

    कई बार तो अगले जन्म तक रहता था जस का तस...

    (ऐसा गाँव के बुज़ुर्ग मानते हैं...)

    ऋतुएँ उनकी देह को यातनाएँ देतीं थीं...

    सूर्य की यातना से भयभीत वे लोग

    कभी नहीं भूलते थे...

    जीवन और यातना के पवित्र संबंध को

    और हर सुबह देते रहते अर्घ्य निष्ठुर सूरज को...

    मौसम के विरुद्ध वो

    घर की दीवारों से कहीं अधिक भरोसा

    किसी अज्ञात दीवार पर करते थे...!

    असंख्य वनस्पतियों के नाम-गुणों को

    याद रखते उन लोगों के लिए स्मृतियाँ कभी बोझ नहीं बनीं...!

    उनके पास बाढ़ की स्मृतियाँ हैं

    बाढ़ में फँसे लोगों के दुःख की स्मृतियाँ हैं...

    उनके पास उन प्रार्थनाओं की स्मृतियाँ हैं

    जो क्रूर मौसम के विरुद्ध ईश्वर से की गईं...

    पौराणिक मिथकों की स्मृतियों से चालित उनके लोग

    बारिश के लिए अपनी नंगी स्त्रियों के साथ खेत तक जोतते थे...

    (ताकि इंद्र प्रसन्न होकर वर्षा करें...)

    जिन लोक-गीतों को वो गाते थे

    उनमें अपार प्रतीक्षाओं के बंध हैं...

    उनकी राग-रागिनियाँ

    अधैर्य के साथ बिल्कुल नहीं सुनीं जा सकतीं हैं...

    किसी को नम आँखों से विदा करके

    वो कई सालों तक रेल का इंतज़ार करते...!

    उनके आराध्य दशकों तक

    निष्कासित रहकर भी अपना धैर्य नहीं खोते...

    मेरा अनुमान है कि

    शायद मैं जानता हूँ...

    पिताओं में इतना धैर्य कहाँ से आता है...?

    स्रोत :
    • रचनाकार : गौरव सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए