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पिता

pita

अलका सिन्हा

अन्य

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और अधिकअलका सिन्हा

    कभी ख़ुश नहीं होते थे पिता

    मेरी किसी भी उपलब्धि पर

    किसी भी हासिल पर

    बड़ी से बड़ी सफलता पर।

    ख़ास अंतर नहीं पड़ता उन्हें

    तालियों की गड़गड़ाहट

    मेडल की खनकती आवाज़

    या फिर, पुरस्कार थामे हाथ से।

    ‘आपकी बेटी है?’

    ‘बहुत भाग्यशाली हैं आप!’

    जैसी बधाइयों पर भी ठहरी रहती

    एक संयमित मुस्कान

    पिता के चेहरे पर।

    ऐसा कभी नहीं हुआ

    कि आह्लाद में भरकर

    पिता ने थपथपाई हो पीठ

    और कहा हो, ‘अच्छा किया।’

    अलबत्ता, उन कमियों की ओर

    ज़रूर दिलाया ध्यान

    जिन्हें दूर किया जा सकता था।

    मैं भी भरपूर यत्न से

    लाँघती गई बाधाएँ

    पकड़ने को लपकती रही वह सिरा

    जो छूट गया था मुझसे

    कभी पाया

    तो नहीं भी पाया कभी

    मगर कभी ख़ुश होते नहीं दिखे पिता

    ठहरी रही उनके चेहरे पर

    एक संयमित मुस्कान।

    एक रोज़ सुना—

    किसी से कह रहे थे पिता

    कि मेरा ही तो अक्स है ये

    मेरा ही अंश

    इसके बारे में क्या कहूँ...

    और रुंध आया था कंठ

    थरथरा गया था स्वर!

    पहली बार जाना था तब

    कि तालियों की गड़गड़ाहट में

    मेडलों की खनखनाहट में

    पुरस्कार थामे हाथों में

    ख़ुद को ही तो देख रहे थे पिता...

    पिता का अंश थी मैं

    उन्हीं की प्रतिच्छाया

    अपनी ही प्रशंसा

    कैसे कर सकते थे पिता!

    अपने ही कसीदे

    कैसे पढ़ सकते थे पिता!

    स्रोत :
    • रचनाकार : अलका सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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