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पिंजड़ा

pinjDa

जयंत शुक्ला

अन्य

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जयंत शुक्ला

पिंजड़ा

जयंत शुक्ला

और अधिकजयंत शुक्ला

    आसमान इस समय जामुनी है

    सड़क पर उसके धब्बे हैं

    सड़क पर उड़ा नहीं जाता।

    दमन करते हुए चप्पल पर

    चिपक जाती है सड़क

    सड़क पर बिखरा है पेड़ों का डी.एन.ए.

    हम चलते हैं उनके जंजाल पर

    मलते हुए आँखें।

    अपना पीलापान लिए हुए

    अब स्ट्रीट लाइट नहीं

    सूरज चुका है।

    प्रकाश बिखरा जाता है

    रंग में हल्का हुआ जाता है

    सड़क अब भी जामुनी है।

    मंदिर के गुंबद के चारों ओर

    लगाते हैं चक्कर—

    कबूतर।

    उनका झुँड

    घूमता जाता है

    लगातार

    वृत्ताकार से अँडाकार हुआ जाता है।

    वह नहीं रुकते

    नहीं ही रुकते

    अपने उड़ने के विज्ञान को करते हुए सार्थक

    एरोडायनिमिक्स की सारी परतें खोलते हुए

    ढाई सौ फीट की ऊँचाई पर उड़ रहे हैं

    और उड़ भी रहे हैं तो कैसे

    एक साथ, एक जगह पर, एक आकार में

    जैसे बाँधा हो उन्हें किसी ने

    जैसे गुलाम हों वो किसी के;

    पिंजड़े में नहीं—आकाश में

    आकाश किसका पिंजड़ा है?

    स्रोत :
    • रचनाकार : जयंत शुक्ला
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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