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पेंसिल

pensil

प्रमोद कुमार तिवारी

अन्य

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और अधिकप्रमोद कुमार तिवारी

    क़लम बनते चले जा रहे हैं हम

    कम होती जा रही हैं

    पेंसिलें

    लगातार

    चिंताजनक ख़बर है ये

    पेंसिल होना

    संभावनाओं का होना है।

    पेंसिल होना

    थोड़ी सी ग़लतियाँ

    ढेर सारे बचपने का होना है

    एक जैसी होती हैं क़लमें

    पेंसिलें होती हैं ख़ास

    बनाई जाती हैं

    मनोयोग से

    रची जाती हैं

    पेंसिलें

    पेंसिल का होना

    थोड़े से श्रम

    ढेर सारी कलाकारी का होना है

    पेंसिल होना संभावना का होना है।

    रेखाओं से पेंसिल का है

    अजीब रिश्ता

    सिर्फ़ आड़ी-तिरछी नहीं

    मोटी, पतली, हल्की या गाढ़ी नहीं

    कुछ तुतलाती रेखाएँ

    कुछ हकलाती रेखाएँ,

    कहीं विश्वास का गाढ़ापन

    कहीं दुविधा की उदासी

    कहीं अक्षरों के छोरों में सपनों का विचलन

    कहीं बेतुकी-सी बातों से डाँट की अनबन

    काले सफ़ेद से दूर

    पेंसिल में भरी है जीवन रंगों की धड़कन

    पेंसिल का होना

    जल टटोल रही जड़ों का होना है,

    पेंसिल होना संभावना का होना है।

    नाज़ुक उँगलियों की

    लचक समाई होती है

    पेंसिल में

    गहरे सुकून की तरह है ये बात

    पेंसिल का दस्तख़त से नहीं जमता रिश्ता

    चुक जाती है क़लमें

    अंत-अंत तक बची रहती है पेंसिल

    सूखे बीज में छुपी नमी-सी

    पेंसिल का होना

    अक़्ल से तबाह दुनिया में

    नक़ल की अबोध भावना का होना है

    पेंसिल होना संभावना का होना है।

    उतनी ही चलती है पेंसिलें

    चलाई जाती हैं जितनी

    यह नहीं कि क़मीज़ से लेकर

    किसी के नसीब तक पर चल जाएँ

    बेसाख़्ता

    ताक़तवर क़लम की ऐंठ से बहुत दूर

    नहीं है इसे

    किसी टूटे ढक्कन के सहारे से परहेज़

    कि पेंसिल की निब

    नहीं तोड़ते कोई जज

    पेंसिल होना

    कमज़ोर पड़ते जा रहे लोगों में

    निडर भरोसे का होना है।

    पेंसिल होना संभावना का होना है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रमोद कुमार तिवारी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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