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पटवारी

patwari

अमर दलपुरा

अन्य

अन्य

अमर दलपुरा

पटवारी

अमर दलपुरा

सरकार का पटवारी गाँव आता

खीर-पुएँ खाता

अनपढ़ किसानों की ज़मीनों को

अपने थैले में रखे होने की धमकियाँ देता

जैसे कि उसने वश में कर लिया हो

गाँव का सारा भूगोल

पिताजी अक्सर कहा करते थे :

'तू पटवारी बन जाता तो अच्छा होता

बची रहती हमारी पुश्तैनी ज़मीन

बची रहती हमारे पुरखों की लाज...'

बेटा, सौ रुपए के नोट को

दो आने की चीज़ के लिए खुल्ला नहीं करवाते

उस सौ रुपए के नोट को

ज़मीन बचाने के एवज़ में

ले गया पटवारी

इस बचाने के चक्कर में,

खो दिया हमने सब कुछ

बचने के नाम पर बचे रह गए हैं सिर्फ़ आँसू

जिनसे भीगती रहती है—

हमारी आत्मा की ज़मीन।

स्रोत :
  • रचनाकार : अमर दलपुरा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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