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आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

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और अधिकआद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

    श्री पत्री लिखा इहाँ से जेठू रामलाल ननघुट्टू कै,

    अब्दुल बेहना गंगा पासी चनिका कहाँर झिरकुट्टू कै।

    सब जन कै पहुँचै राम राम,तोहरी माई कै असिरबाद,

    छोटकउना दादा कहइ लाग,बड़कवा करइ दिन भै इयाद।

    सब इहाँ कुसल मंगल बाटै हम तोहरिन कुसल मनाई थै,

    तुलसी मइया के चउरा पर सँझबाती रोज जलाई थै।

    आगे कै मालुम होइ होल,सब जने गाँव घर सुखी अहैं,

    घेर्राऊ छुट्टी आइ अहैं तोहरिन खातिर सब दुखी अहैं।

    गइया धनाइ गइ जगतू कै,बड़कई भैंसि तलियानि अहै,

    बछिया मरि गइ खुरपका रहा,ओसर भुवरई बियानि अहै।

    कइसे पठई नाहीं तौ नैनू से दुइ मेटी भरी अहै,

    तू कहे रह्या तोहरिन खातिर राबिउ एक गगरी धरी अहै।

    घिउ दूध खूब उतिरान अहै तोहरिन इयाद के रोई थै,

    गंजी से दुपहरिया काटी,एक जूनी रोटी पोई थै।

    दस दिना भवा अइया के रमबरना का कूकुर काटि लिहेस,

    जब ओरहन देइ गए ओसी ओकर महतारी डाटि लिहेस।

    लौगहवा के मेड़े परसौं छोटकवा गिरा काँकर गड़िगा,

    मकरी कै जाला भरे मुला,निकुरा मा जनम दाग परिगा।

    मरि गएन रतन सुम्मारी मंगर का सरग सिधाइ गएन,

    दुइनौ बुढ़वन के तौ बनिगइ दुइनौ अच्छी गति पाइ गएन।

    जौने बुढ़वा कै जोइ मरइ ओका तौ जना नरक परिगा,

    खटिया पर खोखत परा रहेन,घर वालेन का झंझट टरिगा।

    पिछुवारे नरदा के तीरे,बड़कवा पपीता फरइ लाग,

    घूरे का कोहड़ा फूलि रहा,का कही करेजा बरइ लाग।

    चारिउ कइती तोहरिन सूरत डोलइ जौनी मू जाई थै,

    आपने मन कइसउ मारि-मारि लरिकन मा जिउ बिसराई थै।

    अस भया बेदरदी तोहरे चरनन की माटी का तरस गए,

    दरसन का के पूँछे तोहरी चिट्टी पाती का तरसि गए।

    झूठइ एतना सब कहत रह्या जीतइ जिउ अस बिसराइ दिह्या,

    लरिकन कइ मया बा तोहरे आपन खबरिउ तक नाइँ दिया।

    मुल हड़बड़ाइ के भाग्या जिन नाहीं तौ तोहका दोख अहै,

    देसवा की खातिर लड़त अहा एतनइ हमका संतोष अहे।

    बा छिड़ी लड़ाई दुसमन से कुल गली गाँव मा चरचा बा,

    देसवा पर अपने बिपति परी कुल ठाँव ठाँव मा चरचा बा।

    एक दिन देल्हूपुर की बजार मा बड़ी करारी सभा लागि,

    अइया गै रहिन बताइन बड़मनइन पइसा रहे माँगि।

    केउ कहेन खून आपन दइद्या,केउ कहेन कि द्या गहना पाती,

    केउ कहेन कि दुसमन चढ़ा आजु रौंदत बा देसवा कइ छाती।

    हम अही भले मेहरारू मुल हमरिउ देहियाँ गै फरफराइ,

    हम दाँत पीसि के बोले तौ छोटकवा बेटउना गा डेराइ।

    गरमी चढ़ि गै सगरी देहियाँ मा अउर पसीन छूटि गवा,

    आधिन मंगिया हम भरे रहे भुँइयाँ गिरि सीसा फूटि गवा।

    हमरी आँखी कै माछु आज तोहका लरिकन कै कसम अहै,

    अपनी माई के दूध अउर अपने पुरखन के कसम अहै।

    आगे जौ गोड़ बढ़ाया तौ पीछे जिन आपन आँख किह्या,

    हम राँड़ होब तौ होइ दिह्या एकर कौनौ जिन माख किह्या।

    हम तोहरइ नउना रटत-रटत तोहरे लरिकन का सेइ लेब,

    कौनौ सूरत बूड़त बाड़त हम आपन नइया खेइ लेब।

    मुल जउने दिन ताना पउबै हम कुआँ इनारा थाहि लेब,

    तोहरे नउना कइ गारी सुनि हम गड़ही तारा थाहि लेब।

    चैतू कोंहार का बड़का बेटवा जौन फउज मा गवा रहा,

    छुट्टी आवा ओढ़र कइके ओकरे कुच्छउ ना भवा रहा।

    जब तलुक रहा कुल डेबरा भै बस ओकरे पीछे लागि गवा,

    उबियायेन ताना मारि सबै एक दिन चुप्पे से भागि गवा।

    सब कहेन कि सरऊ अब तक तौ बस बइठे बइठे खात रह्या,

    कुलतिउ अंकड़िन के चलत रह्या गदहा अस लदा देखात रह्या।

    जब काम परा तौ कायर अस छुट्टी ले घरे सिधाइ दिह्या,

    महतारी की कोखिया कुल गउना मा दाग लगाइ दिह्या।

    जल्दी भागा नाहीं तौ खुरपा लाल करब दागि देव,

    जौन सजा होई हम अपुनै गउरमिंट से मागि लेब।

    संझा भइ तपता के बइठा सब तोहरइ चरचा खोला थीं,

    कुछ बड़ा बहादुर कहइँ मुला कुछ तबउ फोकाही बोला थीं।

    चाहइ तू हमरी मँगिया कै गीलइ सेंधुर पोंछवाइ दिह्या,

    मुल बैरी आँखी से देख्या ओका जिन बचि के जाइ दिह्या।

    जीतइ जिउ अपने पुरखन के माथे मा दाग लगाया जिन,

    जब तक दुसमन ना भागि जाइ तू घरे लउटि के आया जिन।

    अब अइयउ का सनेस सुनि ल्या ओनहू कै कोखिया बरति अहै,

    ओनहू कै रोवत रात दिना तोहरे बिन अँखिया झरति अहै।

    मुल कहति अहैं बेटवा हमार जौ रन जीतै तौ धन्नि होब,

    धरती माता की खातिर जौ जूझत बीते तौ धन्नि होब।

    तू जीत जात के घर अउब्या हमरे मन का बिसुवास अहै,

    देसवा अपनै जीतै आखिर कन कन का बिसुवास अहै।

    छोटकवा जागि के रोवत बा बोकरी बाँधी मिमियाति अहै,

    हम चिट्ठी लिखति अही ओहमुर कुकुरि रसोइया खाति अहै।

    अब चली उहउ देखी ताकी तू रन से आसिरबाद दिह्या,

    हम पाँव छुई यहिं चिट्ठी से तू मन से आसिरबाद दिह्या।

    स्रोत :
    • पुस्तक : माटी औ महतारी (पृष्ठ 5)
    • रचनाकार : आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
    • प्रकाशन : अवधी अकादमी

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