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प्रकाश की प्रशंसा का गीत - 6

parkash ki prshansa ka geet - 6

अनुवाद : त्रिनेत्र जोशी

आई छिंग

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आई छिंग

प्रकाश की प्रशंसा का गीत - 6

आई छिंग

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    अमाप्य ऊँचाइयों से प्रकाश

    नीचे मनुष्य के इतिहास के दीर्घ प्रवाह को देखता है।

    चओ खओ त्येन से श्येन-आन-मन चौक तक,

    ज्वार की उमड़ती लहरों की एक धारा,

    हमने जाने कितने ख़तरनाक चक्रवात पार कर लिए हैं, जाने

    कितने छिपे शैल

    हम ऐसी नाव पर सवार हैं, जो कभी नहीं डूबेगी,

    क्योंकि आसमान से चमक रहा प्रकाश हमें हमेशा रास्ता दिखाता

    रहेगा...

    हम अनेक भ्रमों से मुक्त हुए हैं,

    हज़ारों बार मूर्ख बनाए जाने के बाद हम बुद्धिमान हुए हैं,

    एकता के अपने अंतर्विरोध हैं, प्रगति इसकी पश्चगामिता है,

    गति इसकी बाधा है, क्रांतियों ने इसके साथ दग़ा किया है।

    प्रकाश का भी अपना अँधेरा है,

    अँधेरे का भी अपना प्रकाश है।

    अनेक भद्दी और शर्मनाक चीजे़ं

    प्रकाश से छिपी हुई हैं :

    विषैले साँप, चूहे, खटमल, बिच्छु

    और सफे़द पतंगों की असंख्य प्रजातियाँ।

    वे ऐसी माताएँ हैं, जो ज़हरीले अंडे देती हैं।

    ज़िंदगी में हमें हमेशा सावधान रहना चाहिए,

    जिन लेटे दुश्मनों को हम देख नहीं पाते,

    वे हम पर घात लगाए बैठे हैं,

    फिर भी, हमारी धारणा

    प्रकाश की तरह अडिग होनी चाहिए...

    चाहे फिर कितने ही विध्वंस क्यों होते हैं—रहें

    जब हम दीर्घ काली रात से गुज़र चुके हैं।

    मनुष्य का भविष्य अनंत प्रकाशमान होगा, हमेशा के लिए

    प्रकाशमान।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 174)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : आई छिंग
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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