प्रकाश की प्रशंसा का गीत - 3
parkash ki prshansa ka geet - 3
मैदान में जलने वाली कैंप फ़ायर।
बंदरगाह के नज़दीक स्थित प्रकाशगृह,
ग्रीष्म-रात्रि में टिमटिमाने वाले तारे,
त्यौहार पर होने वाली आतिशबाज़ियाँ
कितनी सुंदर होती हैं।
ये सभी ख़ूबसूरत चीजे़ं प्रकाश से एकमेव हैं।
कितनी आश्चर्यजनक चीज़ है प्रकाश।
यह वजनरहित है, पर सोने-सा चमकीला है,
देखा जा सकता है, पर पकड़ा नहीं जा सकता,
दुनिया में हर जगह जाता है, पर आकार विहीन है,
चतुर और विनम्र,
वह सौंदर्य से बँधा है।
यह टकरावों और रगड़ से पैदा होता है,
यह जलने और शमित होने की प्रक्रिया से उत्पन्न होता है,
यह आग से, बिजली से आता है,
यह लगातार जलने वाले सूर्य से आता है।
हाँ सूर्य, हमारे प्रकाश का सब से महान् स्त्रोत।
बाह्मय अंतरिक्ष से अरबों मील दूर से।
यह हमारे आवास तक गर्मी भेजता है,
ताकि इस दुनिया में सभी चीजे़ं उग सकें।
हर रचना इसे श्रद्धा अर्पित करती है
क्योंकि प्रकाश ही वह चीज़ है, जो कभी मुरझाती नहीं।
यह एक अगाध चीज़ है
यह ठोस नहीं है, न ही तरल है, न ही गैस है,
यह अचिन्हित चला आता है, बिना छाया के चला जाता है,
अनंत पहुँच के साथ।
यह शोर नहीं मचाता, कहीं भी बस जाता है
यह मज़बूत है पर शक्ति नहीं दिखाता,
यह एक चुप व्यक्तित्व है।
यह एक महान् चीज़ है
धनी और परोपकारी
विशाल दिमाग़ और खुला हृदय,
बिना किसी पुरस्कार की आशा के दान करता है,
निस्स्वार्थ, यह अपनी आभा जगह-जगह भेजता है।
- पुस्तक : सूखी नदी पर ख़ाली नाव (पृष्ठ 168)
- संपादक : वंशी माहेश्वरी
- रचनाकार : आई छिंग
- प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
- संस्करण : 2020
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