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परित्याग की स्थिति में

parityag ki sthiti mein

ज्योति रीता

अन्य

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ज्योति रीता

परित्याग की स्थिति में

ज्योति रीता

और अधिकज्योति रीता

    तुम्हारे आस-पास अनगिन लोगों का जमावड़ा था

    तुम पलटने की स्थिति में भी टकरा सकते थे

    दूर से आता कोई धुँधला चेहरा तुम्हें दिख भी जाता

    कुछ करने की स्थिति से पहले वह ओझल था

    ख़ैरियत कि तुम सलामत रहे

    यहाँ की आबोहवा में दु:ख जकड़ा रहा

    रात की बेचैनी की अवस्था उससे पूछो

    जिसने अलस्सुबह से तुम्हारा इंतज़ार किया

    और तुम आधी रात तक नहीं लौटे

    भ्रम टूटने में वक़्त तो लगता है

    इंतज़ार में सारे गुलाबों की सुगंध बासी हो चली थी

    भोग के दिनों में तुमने मुझे भूखा रखा

    फेंटे हुए अंडे का पकवान धीमी आँच पर पकाना चाहिए

    तेज़ आँच पर जलने की बू आती है

    किसी देश में आकर रुकने से

    वह देश कब उसका हुआ है

    शरणार्थी की तरह हम दु:ख के दिनों में आए

    हमारे सोने का कमरा पानी से भरा था

    और भोजन अधपका

    रोज़नामचे में लिखा जाता रहा तुम्हारा पता

    चाहा हुआ हथेली पर आता ही कब है

    परित्याग की स्थिति में सोचती हूँ

    कहीं पहाड़ पर जाऊँ

    याकि लिख दूँ कोई उलटबाँसी कविता

    जिसे अतृप्त रखा गया बारहों मास

    वह प्रेम के चुंबन को क्या ही समझेगा

    प्रेम में जब आत्मसम्मान की बलि देनी पड़े तब

    प्रेम वहीं स्थगित कर देना

    स्रोत :
    • रचनाकार : ज्योति रीता
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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