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परिचय-पत्र

parichai patr

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

सच्चिदानंद राउतराय

अन्य

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और अधिकसच्चिदानंद राउतराय

    अपना परिचय मैं किस तरह दूँ,

    कोई और भी भला कैसे देगा?

    क्या मैं जानता हूँ, मैं कहाँ से आया हूँ,

    कहाँ जाऊँगा?

    कैसे नापूँगा अपनी नियति

    जो फैली है

    अनजाने से अनजाने तक।

    मैं तो एक यायावर हूँ, चल रहा निरंतर

    वहाँ से वहाँ तक।

    मैं नहीं जानता, कहाँ से कहाँ तक

    और कब,

    देश-काल-पात्र से परे

    अपना अतीत, अपना भविष्य

    देखने, सुनने, जानने से परे

    अवर्तमान में।

    मैं हूँ अपना अदृष्ट।

    मेरा स्थिति-बिंदु एक बुलबुला है काल का

    एक क्षण, एक पल।

    यात्रा मेरी पूर्णविराम-रहित है

    मैं ही द्वंद्व का समाहार हूँ,

    ख़ुद के अलावा दूसरे का स्वागत करता हूँ,

    पकड़ा जाता हूँ विरोधाभासों में।

    मेरा परिचय-पत्र झूलता है एकांत बरगद पर,

    नहीं जिसमें कोई भी अक्षर।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बसंत के एकांत ज़िले में (पृष्ठ 145)
    • रचनाकार : सच्चिदानंद राउतराय
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1990

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