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पाँच रुपए का सिक्का

panch rupae ka sikka

अष्टभुजा शुक्‍ल

अन्य

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अष्टभुजा शुक्‍ल

पाँच रुपए का सिक्का

अष्टभुजा शुक्‍ल

कितनी ठोस है

इसकी छोटाई

गोलाई में वज़न

और वज़न में गोलाई

माना भी नहीं जा सकता इसे बौना

जैसे किसी भोंटिया का नन्हा छौना

गाढ़े में

साथी की तरह

अपने को दाँव पर लगा देने वाला

निकल आने वाला आरती की ज्वाला से बचकर

पानी में अघुलनशील

आँधी से टसकने वाला

पाँच रुपए का यह दमदार सिक्का

मूल्य भी कम नहीं इसका इतना

कि कोई आसानी से स्वीकार ले देना

या अस्वीकार कर दे लेना

रिक्शावालों का प्रायः प्रिय

पाँच रुपए का यह वज़नी सिक्का

कभी-कभी प्रियता मूल्य से नहीं आँकी जाती

किसी भिखारी को मिल जाए यह

तो तत्काल उसका जीवन पहुँच जाए दुगुने पर

किसी बच्चे को गिरा हुआ मिल जाए यह

तो वह वहीं से दौड़ने लगे मैराथन

किसी की जेब से गिर जाए यह

तो चौराहे पर खड़ा कर दे उसे

लेन-देन में

जब भी जाता है अपने पास

पाँच रुपए का यह सिक्का

हर बार सोचता हूँ

कि नहीं भुनाऊँगा इस बार

इस सुंदर-से सिक्के को

रखूँगा अपने पास बहुत जतन और प्रेम से

लेकिन हर बार

इसे चिल्लर और खुदरा बना देती है

अपनी ही कोई लत, ज़रूरत या विवशता

बच्चों के गोल्लक में पहुँचने से पहले ही

इन क़साई हाथों से

हर बार भुजुरी-भुजुरी हो जाता है

पाँच रुपए का यह सलोना सिक्का

प्रतिशत की छूट में

या प्रतिशत के कमीशन में

नारे की तरह चलता

यह मुद्रा, यह धन

यह अपनी पंजी का है पूँजी-निवेश

क्या ले पाएगा यह, क्या ला पाएगा

बाज़ारवाद के महावक्त्र में आविवेश!

सुंदरता कितनी दुबकी है नग्न प्रदर्शन के आगे

खुल्लमखुल्ला, सर्वत्रलभ्य

इस महार्हता के कनॉट प्लेस में

यह सिक्का बेचारा असभ्य

इसके बल पर कहाँ-कहाँ बोली बोलूँगा

पूँछूगा लागत मारुति का और यही पंजी दिखलाऊँगा?

कभी-कभार गीत बिकते थे पहले

पर अब यहाँ-कहाँ कविता बिकती है

कहाँ ख़रीददार हैं इसके

कविता के कुछ श्रमिक, कार्यकर्ता, कुछ उत्पादक

स्वेद स्वेदतर, जनता जिनको नहीं जानती

वे जनता के अवैतनिक वकील

साहब, कृपया पाँच रुपए का यह सिक्का तो ले लो

बुरा लगा तो

मत लो साहब, मित्र, दोस्त, दादा

छोटे को तो आप समझते हैं खोटा

अपने यहाँ पाँच का तो अद्भुत महत्व है

मत्कृते यही पंजी दर्शन का पंचतत्व है

निधि है मेरा, नहीं नाक को पोंटा

मैं जन्मना अहिंसक,

पुनः इसी की बलि लेता हूँ

चलो, इसी पंजी का कहीं पान खाते हैं

मुखरंजन कर कहीं किसी रिक्शेंद्रनाथ से

अर्थशास्त्र पर बतियाते हैं।

स्रोत :
  • रचनाकार : अष्टभुजा शुक्ल
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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