पैरों में आकाश पहने जा रहे हैं वे

pairon mein akash pahne ja rahe hain we

महेश आलोक

महेश आलोक

पैरों में आकाश पहने जा रहे हैं वे

महेश आलोक

पैरों में आकाश पहने जा रहे हैं वे

और यह कितना चमत्कृत करने वाला दृश्य है कि इसी समय

हमारे सपनों में हमारे सपनों की प्रदर्शनी लग रही है

एक मैं ही मूर्ख नहीं हूँ कि ख़ुश होऊँ इस उपलब्धि पर

अंतरिक्ष के ताज़ा मौसम में चिड़ियाँ पंख छोड़ रही हैं

अब उन्हें कौन समझाए कि वहीं घर बनाकर

आना पड़ेगा पृथ्वी पर एक दिन उड़ने के लिए

वे अंतरिक्ष में उगा रहे हैं फ़सल

सब कुछ ठीक रहा और आकाश नहीं फटा

तो देर-सबेर हम भी उड़ेंगे अंतरिक्ष में बँधे हुए ख़ूब सलीक़े से

उनके पैर में

हमारे अंतिम आश्चर्य में हमारे हिस्से का

आकाश होगा और हम अंतरिक्ष में हरियाली देखेंगे

हम देखेंगे अपनी ठोस और पकी हुई स्मृतियों को और

जीवन को उनके बच्चों के स्वाद और खेल में

उनके कुटुंब की नींद से गेंद की तरह उछलते

किसी मंगल ग्रह की खिलखिलाहट में

अपने भविष्य और दुख और अंतिम चिंता को गुरुत्वाकर्षण के नियम से

परे करते हम अपने ख़ुश होने को ज़रूरी काम की तरह याद रखेंगे

और इसे वे अपनी कृपा कहेंगे

इस समय भला इस चिंता का क्या तुक है कि

हम अपने पैरों में अपने हिस्से भर पृथ्वी

पहनकर नहीं उड़ पाएँगे अंतरिक्ष में

स्रोत :
  • रचनाकार : महेश आलोक
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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