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सीताकांत महापात्र

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सीताकांत महापात्र

सारी स्मृतियाँ, क्षोभ और अनुरक्ति

समस्त पराजय, विस्मृति और क्षति

बिना दुविधा, पछतावा और तर्क के

स्वीकार लेता है वह आदमी

सिर झुकाए सह जाता है सारे निर्णय

हवारहित कोठरी में स्थिर

दीपशिखा-सा दाँय-दाँय जलता है

डावाँडोल काग़ज़ का सिंहासन

वहाँ तक पहुँच जाती हैं सीढ़ियाँ

नीचे से ऊपर

व्यग्र दौड़तीं चुहियाँ

चींटियों के जत्थे

सरल विश्वासी असंख्य पतंगे

कूद पड़ते हैं उस अग्निशिखा में

रक्त-पुते दिगंत से आकर

असंख्य अनसुलझे प्रश्नों और उलाहनों का प्रकाश

दुःस्वप्न-सा मँडराता है पीले काग़ज़ पर

मानो सुंदर शांत सुबह

सिल-मिल बहती हवा

चिड़ियों की चहचहाहट

डूब रही हैं अपंग और अक्षम शब्दों की अतल नदी में

असंख्य काग़ज़ी नाव की संभावनाओं से

कभी-कभी प्रलुब्ध प्रभु के

भीतर का शिशु जाग उठता है

अधमरी हड्डियों के नीचे रहते हुए

सपने कुरेदता

टूटे-गले सारे कोढ़ी हाथ

कृपा-भिक्षु संदेही हाथ

ईर्ष्यान्वित क्रुद्ध तलवारों की उठी अँगुलियाँ

अविश्वास क्षोभ हताशा की जारज अँगुलियाँ

बढ़ आती हैं

बढ़ आती हैं

सिंहासन और मुकुट की ओर

मुखमंडल पर सदा

रहती है थकान भरी मुद्रा

प्रतिहिंसा की तलवार

रहती है कोषबद्ध अशक्त

बंद कमरे की दीवारों पर

देखता है वह परछाइयों का रौंदा-मसला

वीभत्स स्वार्थों का भयंकर कुम्भमेला

एरकार वन में उन्मत्त यदुओं के शवों की ढेरियाँ

देखता है वह ढेरों बघनखी और ढालों के

आंलिगन और नृत्य

देखता है सपने के टूटे मंदिर में

अंगहीन अपंग आकांक्षाओं के विभंग स्थापत्य

सुनता है वह

अनंत अष्टवक्र शब्दों का सघन मालकोश

सुदूर वैकुंठ से वह आता है

उच्छिष्ट दिव्यज्ञान

गुनगुनाकर टेलीफ़ोन में ब्रह्मज्ञान का भग्नावशेष

सुनसान काग़ज़ की लीक

धूप में पसरी रहती है तो पसरी रहती है

जाने किस सुदूर ईप्सित घी-शहद के

स्वप्न संसार तक

निरीह बैलगाड़ी वाले का गीत

अस्पष्ट मंत्र-सा बहता चला जाता है

शुष्क बादलों में

पिंगलवर्णी आकाश से झरती है सिर्फ़ आग

अंगार धूम्र और आग झरती है

सम्राट ब्रह्मा

गतिहीन पीलिया-शब्दों की नदी से लाकर

भर-भर कमंडलु मंत्रित पानी छींटते हैं

जी-जान लगाकर छींटते हैं, पर

मर रही दूब को भी नहीं बचा पाते

नज़र चुराकर धूप चली जाती है

तारे टिमटिमाते लगते हैं धुँधले आकाश में

कलम शून्य में लटकी रहती है त्रिशुंक बन

उतर नहीं पाती पश्चात्ताप की मरुभूमि में

निर्णय की इंद्रनील अमरावती में।

स्रोत :
  • पुस्तक : लौट आने का समय (पृष्ठ 1)
  • रचनाकार : सीताकांत महापात्र
  • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
  • संस्करण : 1994

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