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ओड़िशा

oDisha

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

नृसिंह त्रिपाठी

अन्य

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और अधिकनृसिंह त्रिपाठी

    मेरे कमरे की दीवार पर

    टँगा है विश्व का मानचित्र

    दो हिस्से सागर और

    एक हिस्से में कई देश।

    उनके बीच परिचित-सा भारत।

    रेखांकित भारत के सागर तट पर

    सागर जल में—

    ना ना... आदमी के आँसू भींगी

    कुछ ज़मीन

    चूहे के पेट-सा दिखता ओड़िशा।

    मीलों पसरी उजाड़ और बंजर धरती

    कई आधी-अधूरी नदियों का जाल

    जो उफन पड़ती बरसात में

    छोटे-मोटे बाँध,

    कहीं एक-दो कारखाने

    मच्छी के दोने-जैसे गाँवों के गुच्छ

    बीच-बीच कहीं एक-एक शहर,

    छीलते-छीलते बची दाढ़ी से समाप्त प्राण

    जंगलों के खंड,

    उनमें हल-बैल लिए

    आकाश तकते भोले-भाले बेशुमार लोग।

    मेरे कमरे की दीवार पर

    टँगा है ओड़िशा।

    जहाँ उजड़े बिखरे मंदिरों के खंडहर

    और उन्हीं में समाया

    असमर्थ हाथों का वर्तमान अँधेरा,

    और धुंधलाया भविष्य।

    माटी पानी, आकाश

    कंकाल थरथराता

    बुढ़िया, उदास पहाड़-सी

    सहिष्णुता लिए एकटक ताकती

    प्रतीक्षा में वर्षों से।

    जीवों के जन्म और वहाँ से मृत्यु तक

    भूख से गहरी ठनी है उसकी।

    मेरे कमरे की दीवार पर

    टँगा है विश्व का मानचित्र

    जहाँ सैकड़ों देश, सागर, पहाड़ हैं

    मगर ओड़िशा ग़ायब वहाँ!

    मैं सुबकता

    चीख़-चीख़ पूछता—

    कहाँ है मेरा ओड़िशा

    कहाँ गया?

    गुम गया कहाँ, कोई बताए!!

    वहाँ दिख रहा अब

    केवल बूँद भर आँसू अधसूखा!!

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 222)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : नृसिंह त्रिपाठी
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

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