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निष्ठुर-नियति

nishthur niyti

नितेश व्यास

अन्य

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नितेश व्यास

निष्ठुर-नियति

नितेश व्यास

और अधिकनितेश व्यास

    हमने जगह-जगह पत्थर तोड़े, धरती खोदी

    हमें कहीं नहीं मिला 

    युधिष्ठिर का 

    अक्षय भिक्षा-पात्र जो वनवास के समय उन्हें दिया था सूर्यदेव ने, 

    हम भी तो वनवासी हैं

    हम भी हारे हुए हैं जीवन-द्यूत में

    हमारे पास है खाली पात्र

    जिनमें चिल-चिलाता रहता हमारे बिलखते बचपन का

    मासूम चेहरा

    भूख की दीक्षा-विधि हमारा

    पहला संस्कार है

    हमें किसी गुरुकुल में नहीं मिली विधिवत् शिक्षा

    हमने जो भी सीखा

    ठोकरों और थपेड़ों से ही सीखा

    पर हमने क्या सीखा?

    तमतमाता सूरज हमारा अबोला गुरु है

    जिसे नहीं चाहिए था हमारा अँगुठा

    हमारा स्वेद ही उसकी गुरुदक्षिणा है और जो भटकाव है हमारा वह है प्रदक्षिणा

    हमने उसे चढ़ाया है आँसुओं का विशेषार्घ्य

    किसी भी पुण्यकर्म से कटने वाले पापों की पुरातन बेडियाँ जिनकी लंबाई हमारे जन्मों को लाँघती हुई 

    बढ़ती ही जाती है,

    सूरज के घोडों की गति से भी तीव्रगतिक

    हमारा दुर्भाग्य,

    किसी दूर से दिखने वाली पताका की तरह लहराता दिख जाता हमारी माताओं के गर्भ में ही

    फिर भी निष्ठुर नियति देती रहती हमें जन्म पर जन्म

    जाने कौन-से अकृत-अपराध का बदला लेने के लिए॥

    स्रोत :
    • रचनाकार : नितेश व्यास
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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