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फ़ालतू पन्ने

faltu panne

अजायब सिंह हुँदल

अन्य

अन्य

अजायब सिंह हुँदल

फ़ालतू पन्ने

अजायब सिंह हुँदल

कई बार

कितना ज़रूरी हो जाता है

अख़बार के कुछ ख़ास पन्ने पढ़ते रहना

सौ काम छोड़कर पढ़ना

अख़बार पढ़ने से पहले पढ़ना

एक सोच बन जाते हैं पन्ने

एक आशा होती है उनसे

एक विश्वास होता है उन पर

कभी-कभी

अख़बार ही वे पन्ने होते हैं

उन पन्नों को पढ़कर

पढ़ लिया लगता है पूरा अख़बार

उन पन्नों को पढ़कर लगता है

पूरा अख़बार ही पढ़ लिया

जीवन में बहुत कुछ की तरह

जब वे पन्ने भी फ़ालतू पन्ने हो जाएँ

मनुष्य अपने बारे में लग जाता है सोचने।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 382)
  • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
  • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2014

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