Font by Mehr Nastaliq Web

सुबह को जन्म देने की तत्परता में

subah ko janm dene ki tatparta mein

वानीरा गिरि

अन्य

अन्य

वानीरा गिरि

सुबह को जन्म देने की तत्परता में

वानीरा गिरि

और अधिकवानीरा गिरि

    उतरता है एक साया

    सुबह के लिए संसार भर पर

    पर्वतों के ढूह

    मैदानों की पदचाप

    समुद्र की हथेली भर

    साया—एक अस्तित्व का

    साया—एक गुच्छा धान की बाली का

    साया—एक ढेर रुई का

    साया—एक आलिंगन, माया और आकर्षण का

    साया—एक दीवार, पत्थर और मिट्टी का।

    कितने तो रात की ही प्रतीक्षा करते रहते हैं

    रात भर देती है

    दूर...सुनसान धर्मशाला में

    भूले-भटके किसी यात्री के आकर

    ठहरने की तैयारी-जैसा

    सुबकती हुई रोती है रात

    वेश्याओं के दुर्गंधयुक्त पेटीकोट पर

    एक रात चुपके से

    परित्याग करते हैं बुद्ध यशोधरा का।

    एक संपूर्ण रात फैल सकती है असन के तहखानों में

    ज़िंदगी निद्रामग्न हो जाती है, रात-भर

    साया तिरछा होता है—क्षितिज के आगोश में

    रात की धारा में

    ख़ून फैल जाता है—पूर्व के शरीर पर

    धूप चढ़ती है ऊपर की ओर

    सुबह को जन्म देने की तत्परता में

    सुबह को जन्म देने की तत्परता में।

    *असन : काठमांडू का एक बाज़ार।

    स्रोत :
    • पुस्तक : नेपाली कविताएँ (पृष्ठ 48)
    • संपादक : सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, किशोर नेपाल, जगदीश घिमिरे
    • रचनाकार : वाणिका गिरि
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
    • संस्करण : 1982

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY