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इक लावारिस सवाल

ik lavaris saval

रमेश क्षितिज

अन्य

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रमेश क्षितिज

इक लावारिस सवाल

रमेश क्षितिज

और अधिकरमेश क्षितिज

     

    बादलों से घिरा है आसमान
    छिटपुट हो रही है बारिश
    ओढ़कर छतरी मैं चले जा रहा हूँ टोकियो की
    एक सड़क के किनारे-ही-किनारे

    चलते-चलते मेरे पैर
    अचानक उलझ जाते हैं
    ‘ओहायो गोजाइमास’ की हम-आवाज़ की डोरी में
    रंगीन छतरी ओढ़े
    पास ही में खड़ी है इक वृद्ध मुस्कान!

    “अरसा पहले जब जवान थी, मैं गई थी
    नेपाल के सुदूर गाँव में
    और बनाए थे दोस्त छोटे-छोटे बच्चे
    वृद्ध देहाती लोग
    कहीं नहीं मिला जीवन में इतना प्यार!
    तभी तो हर साल भेजती हूँ कुछ रक़म उस स्कूल के लिए

    याद करती हूँ तो करुणा से भीग जाता है दिल
    कैसे देखते होंगे बुद्ध की गंभीर आँखें
    बारूदी सुरंग के ऊपर चलता जा रहा निरीह समय
    और एम्बुश बिछी हुई सीढ़ियाँ?”

    हवा का आक्रामक इक झोंका आकर
    छीन लेता है मेरे हाथ से छतरी
    और गिराती है वृद्ध मुस्कान की कोपलें
    सवालिया निशान खड़ा ही रहता है बिजली के खंबे-सा

    हम जाते हैं अपने-अपने रास्ते।

              
    स्रोत :
    • रचनाकार : रमेश क्षितिज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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