सिसिफस अखनो जीवित अछि
संगी जीवि रहल छी
जीवहि परत जँ जनमल छी
कारण जिनगी कोनो कंघी नहि,
दाँत टूटि गेलाक बाद
फेकि देल जाइत अछि जे,
जिनगी तँ सिसिफसक भाग्यक पाथर अछि
गुड़का रहल अछि जकरा
ओ पर्वतक शीखरदिस
आ गुड़कि जाइत अछि निच्चा
जे बेर-बेर।
देवतासँ विद्रोहक दण्ड
सत्य बजबाक दण्ड
भोगने रहै तहिया, जहिया रहल करै देवता
एहि धरतीपर।
आब देवता नहि रहैत अछि एतय
हँ, देवताक खोभारी धरि अवश्य छिड़ियायल छै,
आ तेँ किछु लोक
देवताक गेटअपमे
सजैत आयल अछि
सजि रहल अछि यत्र-तत्र,
देवताक प्रतिनिधि
चारण
लगुआ-भगुआ
हुँह!
देवता भऽ गेल अछि
पाथर आब,
ओना देवता
तहियो रहै पाथरे
जहिया सिसिफस
रहल करै युनानमे।
आइ सिसिफस
युनानेमे नहि
सभतरि जनमि गेल अछि
एहनो जे विद्रोह कयने अछि देवतासँ,
एहनो जे विद्रोह नहि कयने अइछ देवतासँ,
मुदा भोगि रहल अछि दण्ड दुनू।
संगी,
दण्ड भोगनाइ जँ भऽ जाय नियति,
विद्रोह भऽ जाइत अछि सूत्र वाक्य
जीवनक।
संगी,
जीवि रहल छी जिनगी, हमहुँ,
युनानक ओहि सिसिफस जकाँ
जकरा नीक नहि लगै झूठ
आ तेँ बाजल रहै सत्य,
कयने रहै विद्रोह देवतासँ।
संगी,
हमहुँ सिसिफस छी,
अहँ सिसिफिस छी,
ठीके,
सिसिफस अखनो जीवैत अछि।
मुदा हम ओ सिसिफस नहि
जे युनानमे रहैत छल
जे देवताद्वारा देल दण्डकेँ
नियतिक पाथर बूझि
गुड़कऽबैत रहल।
हम तँ वर्तमानक सिसिफस छी
अझुका आदमी छी,
जे देवता आ दण्ड
दुनूक विरुद्ध ठाढ़ अछि,
आ विद्रोह, जकर
अखुनका नियति अछि,
ठीके सिसिफस अखनो जीवैत अछि
विद्रोहक पाथरक संगे
शीखरदिस चढ़त
पिछरैत
खसैत
आ फेर चढ़ैत,
ठीके सिसिफस अखनो जीवैत अछि।
- पुस्तक : समय गीत (पृष्ठ 62)
- रचनाकार : रोशन जनकपुरी
- प्रकाशन : मैथिली विकास कोष, जनकपुर
- संस्करण : 2013
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