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मुझे कुछ नहीं ख़रीदना

mujhe kuch nahin kharidna

रविंद्र स्वप्निल प्रजापति

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रविंद्र स्वप्निल प्रजापति

मुझे कुछ नहीं ख़रीदना

रविंद्र स्वप्निल प्रजापति

मुझे कुछ नहीं ख़रीदना आज

कुछ नहीं ख़रीदना आज मुझे बादल देखना है

तुम कितना भी आग्रह के होर्डिंग लगाओ

तुम कुछ भी कहो पर मैं ख़रीदना नहीं चाहता

मैं तालाब के किनारों पर बादलों को देखने जा रहा हूँ

रोज़-रोज़ तुम बहुत से बहाने लेकर आते हो

पर आज मैं किसी तरह फँसना नहीं चाहता

आज मैं कुछ नहीं ख़रीदना चाहता

तुम मुझे बादलों को देखने से नहीं रोक सकते

मैं नहीं लेना चाहता एक के साथ एक फ़्री

दो के साथ एक शर्ट नहीं लेना चाहता

यह त्रासदी है कि तुम एक के साथ एक फ़्री दे रहे हो

तुम पचास प्रतिशत में सेल लगाकर लगातार

अवमूल्यन कर रहे हो मेरा और मेरे श्रम का

ये कैसी समृद्धि है इस शहर के चारों तरफ़

कैसी होड़ है कैसी दौड़ है मेरे चारों तरफ़

मुझे मौसम नहीं देखने देती

बादलों के बदलते आकारों में

कल्पनाएँ करने की फ़ुरसत छीन लेती है

ख़रीदना ज़रूरी है बाज़ार की इस रोशनी के बीच

यूँ ही चलना मुश्किल कर दिया गया है

मैं बादल देखना चाहता हूँ कुछ ख़रीदना नहीं

मुझे यह पता है कि रुपया जितना तेज़ घूमेगा

हमारे हाथों में समृद्धि उतनी तेज़ आएगी

पर क्या तुमको पता है मेरे पास रुपया है

है भी तो क्या उससे सिर्फ़ ख़रीदना ही ज़रूरी है

मैं आज बादल ख़रीदना चाहता हूँ लेकिन

कैसा रुपया है जिसे बादल इसे नहीं लेते

किनारे और लहरें भी नहीं लेते

सूरज की धूप और पेड़ भी नहीं लेते इसलिए

आज मैं कुछ नहीं ख़रीदना चाहता।

स्रोत :
  • रचनाकार : रविंद्र स्वप्निल प्रजापति
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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