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मृत सदियों का भार

mrit sadiyon ka bhaar

हरविंदर भंडाल

अन्य

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हरविंदर भंडाल

मृत सदियों का भार

हरविंदर भंडाल

और अधिकहरविंदर भंडाल

    मूर्ख विक्रम

    अभी तक

    मृत सदियों को पीठ पर लादकर

    घूम रहा है

    वैसे ही

    सब बेतालों और दुर्गंधों समेत

    अब भी

    फूलों से श्मशान की ओर

    सफ़र करता है

    चिंतन में ऋषि

    फीके जुगनुओं की

    सीमा-रेखा से दूर

    अँधेरे टापुओं में

    क़दमों के दीप जलाते हैं

    और करते हैं पहचान

    डूब चुकी नब्ज़ों की

    बीत चुके ख़ुदा के पिंजरे तोड़कर

    सब तोते पंखों में

    परवाज़ बुन रहे हैं

    लेकिन मूर्ख विक्रम

    अभी शवों के हाथों में

    खोज रहा है तलवारें

    दर्पण कह रहा है

    कि टूटे सितारों से

    सूर्य, सर्जन की बात करें

    मदारियों की प्रेतात्माएँ

    जीवन के किसी भी आँगन में

    नाच नहीं कर सकतीं

    अब पिघल रहे हैं वे अक्षर भी

    इस्पाती बर्फ़ की तरह

    जो सदियों तक रहे हिमालय

    और मूर्ख विक्रम

    अभी तक

    हाथ में थामी तलवार से

    भविष्य का शीश क़लम करने पर आमादा

    लेकिन भविष्य का सिर्फ़

    एक ही शीश तो नहीं होता।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 706)
    • संपादक : सुतिंदर सिंह नूर
    • रचनाकार : कवि के साथ अनुवादक फूलचंद मानव, योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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