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तलाश

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आकांक्षा

अन्य

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आकांक्षा

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और अधिकआकांक्षा

    तुम मुझे

    इन पुरानी इमारतों-सी प्रतीत होती हो।

    दशकों, सालों के सावन देखे जिसने,

    पूस के चाँदनी में चमकी जो,

    खिड़की का काँच खोकर

    ख़राब चिटकनी के दरवाज़ों के साथ

    अब भी डटी खड़ी हुई है।

    वर्षों की प्रताड़ना के बाद भी,

    कभी किसी रोज़ कोई आता है

    जो संवरने को मजबूर करता है

    तमाम तरकीबों से और पक्की हो जाती थी।

    टूटी दीवारें, उखड़ा प्लास्टर,

    दे जाता कुछ और दशक

    खड़े रहने का साहस,

    डंटे रहने का साधन।

    जर्जर होकर भी सौंदर्य का पर्याय

    तुम मुझे,

    इन पुरानी इमारतों-सी प्रतीत होती हो।

    और मैं उस रोज़ की तलाश में

    जब दे सकूँ साहस

    तुम्हे, डंटे रहने का।

    स्रोत :
    • पुस्तक : उड़हुल का फूल (पृष्ठ 64)
    • रचनाकार : आकांक्षा
    • प्रकाशन : आईसेक्ट पब्लिकेशन
    • संस्करण : 2023

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