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मित्र राग में सोचते हुए

mitr rag mein sochte hue

प्रभात मिलिंद

अन्य

अन्य

प्रभात मिलिंद

मित्र राग में सोचते हुए

प्रभात मिलिंद

और अधिकप्रभात मिलिंद

    वे बेशक सजा लें अपने तोपख़ाने

    और हमारी ज़िंदगी को

    अपनी मर्ज़ी का ग़ुलाम बना लें

    मुझे यक़ीन है

    कि दोस्त साथ होंगे अगर

    तो मैं पृथ्वी को

    नष्ट होने से अंततः बचा लूँगा

    दुनिया की बेशतर आबादी

    फ़िलहाल जबकि

    ज़िंदा बची रहने के लिए

    बंकरों की मोहताज है

    मैं दोस्तों के

    पुराने ख़त पढ़ता हुआ

    किसी भी मौसम में बेख़ौफ़ घूमता हूँ

    इस दौर का

    सबसे क्रूर खलपुरुष

    सरेबाज़ार मुस्कुराता हुआ घूमता है

    सिर्फ़ इसलिए

    क्योंकि न्यायाधीश उसका मित्र है

    दोस्त हमारी सभ्यता के

    सबसे पुराने प्रतीक चिह्न हैं

    और दोस्ती आत्मनिर्वासन के दिनों में

    हमारी सबसे महफ़ूज़ पनाहगाह

    इस धरती पर सिर्फ़ दोस्त ही होते हैं

    जो हमें प्रेम करने से नहीं रोकते

    आप चाहें मानें लेकिन बरसों-बरस

    ज़िंदगी के बेहद ख़िलाफ़ दिन

    सिर्फ़ दोस्ती गुनगुनाते हुए तय किए हैं मैंने

    और अक्सर यह सोचा है

    दोस्त होंगे अगर तो कैसे बचेगी पृथ्वी!

    स्रोत :
    • रचनाकार : प्रभात मिलिंद
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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