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मृत्यु अचानक नहीं आती

mirtyu achanak nahin aati

अर्चना लार्क

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अर्चना लार्क

मृत्यु अचानक नहीं आती

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    वक़्त की मार अंतर्मन को निचोड़ लेती है

    कुछ बातें खौलती ही नहीं हौलती हैं

    और जीना मुहाल कर देती हैं

    कितना ज़रूरी हो जाता है कभी-कभी जीना

    बचपन को छुपते देखना

    सब कुछ बदलते देखना

    कितना कुछ हो जाता है

    और कुछ भी नहीं होता

    अभिनय सटीक हो जाता है

    सपाटबयानी विपरीत

    दिशाएँ बदल जाती हैं

    रात से सुबह

    सुबह से रात हो जाती है

    पृथ्वी अपनी धुरी पर चक्कर लगाती तटस्थ-सी हो जाती है

    समय सिखाता है गले की नसों को आँसुओं से भरना

    और एकांत में घूँट-घूँटकर पीना

    कितना कुछ पीना होता है

    कितना कुछ सीना होता है

    जीवन में तुरपाई करते गाँठ पड़ जाती है

    ये सीवन उधड़ने पर ही पता चलता है

    जीवन दिखता है

    और जीना नहीं हो पाता है

    कितना कुछ घट जाता है

    शोर बढ़ता ही जाता है

    बुढ़ापे की लकीर और गहरी होती जाती है।

    स्रोत :
    • रचनाकार : अर्चना लार्क
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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