मेरी चदरिया

meri chadariya

रति सक्सेना

रति सक्सेना

मेरी चदरिया

रति सक्सेना

उस सुबह, जब मैंने अपनी चादर उठाई तो

दिखाई दिया एक नन्हा-सा छेद,

चादर के आर-पार, मेरी नींद का परिणाम

वह दिन मेरे लिए रेशमी धागों से उलझने का साबित हुआ

अगली नींद से पहले मेरे पास एक खिड़की थी

जिसमें से दिखे कई नए सपने

दूसरे दिन फिर एक नया छेद

इस बार रेशम का साथ दिया रंगों ने

रात से पहले तैयार था एक दरवाज़ा

नींद को बहाना मिल गया

खिड़की झाँकने की जगह दरवाज़े से निकल

रात भर भटकने का

लेकिन हर सुबह एक नए छेद के साथ आती रही

दुपहर रेशम, रंगों और कूचियों में व्यस्त रही

लेकिन अब मेरी चदरिया में विशाल आँगन, उसमें घना बरगद

बरगद पर परिंदे, और परिंदों की चोंच में लाल सितारे

सूरज चाँद अब भी दूर थे

मेरी सुबहें छेद को तलाशने लगीं

जिससे बुन जाए सूरज-चाँद

इस आदम ब्रह्मांड के ही नहीं

उस पार के पार

अनेकों ब्रह्मांडों के

और फिर अंत में एक ऐसा छेद

जिससे निकल मैं समा जाऊँ

अपरंपार

छिद्ररहित आलोक में।

स्रोत :
  • रचनाकार : रति सक्सेना
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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