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मेरे सपने चौराहे पर गिरे हुए

mere sapne chaurahe par gire hue

अनुवाद : चंद्रकांत पाटील

मनोहर ओक

अन्य

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मनोहर ओक

मेरे सपने चौराहे पर गिरे हुए

मनोहर ओक

और अधिकमनोहर ओक

    मेरे सपने चौराहे पर गिरे हुए गँदले पानी के साथ देख बहकर

    मुझे दुनिया का भरोसा हो रहा है

    फालतू ताश के पत्ते जैसा मैं

    आँखों में मेरी ‘आंटियाँ’ इकट्ठा हुई हैं

    लेकिन बीस उँगलियों से मैं क्या करूँ?

    रात भर जल रही हैं मोमबत्तियाँ

    बह रही हैं, बादाम लटक रहे हैं,

    क्राइस्ट मुझसे होड़ कर रहे हैं।

    मुझे खेद है

    रास्ते कीचड़ से भर रहे हैं पैर लटक रहे हैं आँखों पर भाग रहे हैं

    दूर जा रहे हैं खंभों के दिये

    टपक कर चाँद आँखों में पैरों तले आएगा

    ईश्वर के घर का तारयंत्र

    कानों में कट्ट-कड़-कट्ट कर रहा है।

    वही बहरूपिया प्याले द्रव बदलते रहे हैं मुहल्ले का गर्म मसाला डाल

    घुलमिल रहे हैं सातों रसायन सनसना रहे हैं रग-रग में

    ताज़ा बन हर कोई सुराख़ माँग रहा है प्रवेश पाना चाहता है

    आगामी सूर्प पिण्ड

    वारयोषिता-जैसी बरस रही है बरसात

    कौन अपने बच्चे का बाप, ढूँढ़ने के लिए

    फोकट रही है रातें भटक रहे हैं रास्ते तमाम ‘डेड एंड’ वाले

    समंदर मछलियाँ मार रहे हैं

    यकायक रास्तों को ज्वार रहा है सभी बिल्डिंगें दूर भाग रही हैं

    पैरों तले फैल रही है रेत सभी पैर आकाश समांतर हो रहे हैं

    बुझ रही हैं रात समूची सिमटती पलकों में हलके हो रहे गात्र-नेत्र

    बुझ रही हैं दिशाएँ

    सब किर-किर-किर-किर सभी किर्र किरकिराट

    आरी चला रहे हैं जुगनू-अंगार, बदन पर चेचक उभर रहे हैं।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साठोत्तर मराठी कविताएँ (पृष्ठ 38)
    • संपादक : चंद्रकांत पाटील
    • रचनाकार : मनोहर ओक
    • प्रकाशन : साहित्य भंडार
    • संस्करण : 2014

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