मेरा परिचय

mera parichai

मनमोहन मिश्र

मनमोहन मिश्र

मेरा परिचय

मनमोहन मिश्र

मैं हूँ वेगवान जाति का प्रतिदिन

वेगवान एक चक्र का हूँ देखो सारथि।

एक रहस्यमयी हास्यमयी माटी का कलाकार।

कुछ छोटी-बड़ी पर्वतमाला

कुछ घिसी ग्रेनाइट की अश्लील मूर्तियाँ

दुपैसी वाली डाकटिकट का सुदर्शन घोड़ा

पाषाण की कुछ कामरता लतायिता

पद्म वन में पक्षवती परी—

मेरा परिचय नहीं

छोटी-बड़ी नदी

उस नदी की रोष-वह्नि में अटल हुए

जउगढ़ का फ़ाटक मैं नहीं।

इतिहास के यात्रापथ में झर रहे

झर रहे मील के पत्थर

जोड़ता मैं नहीं

मैं हूँ वेगवान जाति का प्रतिनिधि।।

मैं स्रष्टा हूँ

मेरे बिना आज यह सृष्टि भी साध्य नहीं

मैं खटोले के कीड़े का खाद्य नहीं

किसी मुनि अतीत की मंत्र-विधि में

मुग्ध नहीं, बँधा नहीं।

क्या अधिकार है तुम्हें

अतीत के मोन्यूमेंट की ओट में

मुझे खोजने का

एवरेस्ट की उन्नत चोटी पर

अचलायतन मैं नहीं।

हीराकुद के हर बुलबुले की

थिरकन में

हर पल शक्ति रूप में

वर्ती बनकर जनम लेता।

हर कुटीर में आलोक रूपहली पर

इस्पात के चंचल रश्मि-कणों में

निरंतर मेरा क्षय

और जन्म

जन्म और क्षय—

यही है मेरा परिचय।

मेरी प्रचंड दाहक साँसों में

अतीत का जो पूर्ण होता

वह स्वर्ण होता

मेरे मानदंड के उद्भास पर

अतीत का जो चूर्ण होता

वह चूर्ण होता।

एकाम्र, कोणार्क का स्मारक मैं,

वाहक मैं वसुधा का,

तूली का रंजन का, नूपुर सिंजिनी का

आँखों के अंजन का।

पाठक मैं, ग्राहक मैं

अपनी जन्नभुमि की छाती छूकर

जितना अभाव में

दुःख दर्द में

उस सबका दाहक मैं।

मैं शांतिजयी

शांतिजयी सृष्टि की भारती

मैं वेगवान एक चक्र का हूँ सारथी

मैं एक स्वप्निल वास्तव का कर्म-विधि

मैं एक वेगवान जाति का हूँ प्रतिनिधि।

स्रोत :
  • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 86)
  • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
  • रचनाकार : मनमोहन मिश्र
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2009

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