मऊग मने...

mauug mane

प्रीति चौधरी

प्रीति चौधरी

मऊग मने...

प्रीति चौधरी

माँ सिसक रहीं

अपनी दिवंगत माँ को उलाहना देती

ऐसा दब्बू बनाया तुम्हारी नानी ने मुझे कि

पूरी ज़िंदगी ससुर-भसुर के सामने नहीं खुली ज़ुबान

माँ को मलाल है

समय रहते कुछ बातों का जवाब दे पाने का

आख़िर क्या बोलना चाहती थीं माँ

किसे क्या बताना था

ज़रा कुरेदने पर खुली बात कि

माँ आहत थीं अपने पिता के अपमान से

पचास साल बाद उस अपमान को याद कर रोतीं

माँ बोली :

चचिया ससुर ने कहा था उनके पिता को 'मऊग'

पचास साल पहले बोला शब्द

अब भी बेधता है भीतर तक

'मऊग...?'

मैं पूछती हूँ मऊग मतलब

हमारे बाबू जी

पत्नी की इज़्ज़त करते

संग खिलाते

गाँव में नाच-नौटंकी-भजन-कीर्तन

सबमें साथ बैठाते

यही बात

यही उत्साह

यही छूट

यही ख़ुशी

नहीं थी बर्दाश्त चचिया ससुर को

जो औरत की इच्छा को दे मान

भरोसा दे बिठाए बराबरी में वह मऊग

एक साँस में इतना सब कुछ बोलने के बाद

माँ पूछती हैं भोजपुरी में

अब बुझाईल मऊग मने का

मऊग मने...

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स्रोत :
  • रचनाकार : प्रीति चौधरी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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